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सूरीश्वर और सम्राट् ।
कोठारी, नागौर में जयमल महेता और जालोर में मेहाजल रहता था । वह वीसा पोरवाल था । उसने लाख रुपये खर्चकर चौमुखजीका मंदिर
अलवर में लाये गये । वहाँके छोड़े न गये । उनमें से
बेच आनेकी उसको आज्ञा की । ये सब लोग पहिले महाजनोंने उन्हें छोड़ देनेकी प्रार्थना की; परन्तु वे दबीस मनुष्य सदैव रक्षकों की बेपरवाहीसे मरते रहते थे । भैरवको यह बात अत्यंत दुखःदाई मालूम हुई । वह हुमायूँका मानीता मंत्री था । ऐसी अवस्था में भी यदि वह कुछ न करता तो फिर उसकी दयालुता और सन्मान क्या कामके थे ? सबेरेके वक्त बादशाह जब दातन करने बैठा तब उसने अपनी अंगूठी भैरवके हाथमें दी । भैरवने एक कोरे कागज पर अंगूठीकी मुहर लगा ली । जब वह बादशाह के पाससे आया तब एकान्तमें बैठकर उसने धूजते हाथों उस कागजपर फर्मान लिखा । इस फर्मानको लेकर वह मुकी मके पास गया । आप रथमें बैठा रहा और अपने एक नौकरको फर्मान लेकर मुकीम के पास भेजा । फर्मान में लिखा था - " तत्काल ही नौलाख बंदियों को भैरव के हवाले कर देना । बादशाहकी मुहर - छापका फर्मान देखकर मुकीमने भैरवको अपने पास बुलाया; उसका सत्कार किया और बंदियोंको उसके आधीन कर दिया । बंदी स्त्री, पुरुष, बालक-बूढे सभी भैरवको अन्तःकरणपूर्वक आशीर्वाद देने लगे । भैरवने उसी रात उन सबको रवाना कर दिया और खर्चे के लिये एक एक स्वर्ण मुद्रा सभीको दी । उनमेंके पाँचसौ मुखिओंको एक एक घोड़ा भी, उसने सवारीके लिए दिया ।
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सबेरे हो. भैरव देवपूजा, गुरुवंदनादि आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो, विचित्र वाघा पहिन बादशाह के पास गया । बादशाह सहसा उसे न पहिचान सका । उसने पूछा:- " तुम कौन हो ? " भैरवने कहाःमैं आपका दास भैरव हूँ। आज मैंने हुजूरका बहुत बड़ा गुनाह किया है । मैंने उन नौलाख कैदियोंको छुड़ा दिया है और बहुतसा धन भी खर्चा है । बादशाह यह सुनकर क्रुद्ध हुआ और उसने “किसलिए ऐसा किया ? किसकी आज्ञासे किया" आदि कई बातें कह डालीं । भैरव आहिस्तणीके साथ बोला:- " हुजूरके सिर एक आपत्ति है, इसी लिए मैंने सब बंदियों को घोड़े और धन देकर रवाना करदिया है । वे बेचारे अपने बालबच्चों और सगेसंबंधियों से जुदा होगये थे । मैंने उनकी जुदाई मेटकर उनकी दुआएँ ली हैं और खुदावंदकी उम्र दराज - बढ़ी आयु की इस युक्तिसे बादशाह ज्ञान्तही नहीं होगया बल्के भैरव से प्रसन्न भी हुआ ।
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