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________________ शिज्य-परिवार। २५१ प्रतिमा स्थापन कराई थी। दूसरा गंधारमें है, उसमें नवपल्लवपार्श्वनाथकी स्थापना कराई थी। तीसरा *नेनामें है। उसमें ऋषभदेवकी प्रतिमाकी स्थापना कराई थी। दो मंदिर वरडोलामें बनवाकर उनमें करेडापार्श्वनाथ और नेमिनाथकी मूर्तिकी स्थापना कराई थी। इन्होंने संघवी बनकर आबू, राणपुर और गोडीपार्श्वनाथकी यात्राके लिए संघ निकाले थे। इन दोनोंका इतना मान था कि, अकबर बादशाहने भी इनका कर माफ कर दिया था । जीवदयाके कार्यो में भी दोनों भाई हमेशा अगुआ रहते थे । उन्होंने सरकारसे यह आज्ञा प्राप्त की थी कि, घोघलामें कोई मनुष्य जीवहिंसा न करे । सन् १६६१ में जब भयंकर दुष्काल पड़ा था, तब उन्होंने चार हजार मन अनाज खर्च लंकारहारसदृशैः शाहिश्रीअकबरपर्षदि प्राप्तवर्णवादैः श्रीविजयसेनसूरिभिः। इस लेखसे मालूम होता है कि, वि० सं० १६४४ में राजिया और वजियाने मंदिर बनवाकर उसमें चिन्तामणि पार्श्वनाथ और महावीरस्वामीकी प्रतिष्ठा कराई थी । प्रतिष्ठा श्रीविजयसेनसूरिने की थी। इस लेखमें केवल प्रतिष्ठाका संवत् लिखा गया है । मिति या वार नहीं लिखे गये। मगर इस लेखमें जिस मूर्तिको स्थापन करनेका वर्णन है उस मूर्ति (चिन्तामणिपार्श्वनाथकी मति) परके लेखमें प्रतिष्ठाकी तिथि सं० १६४४ का जेठ सुद १२ सोमवार दी गई है। इसी प्रकार 'विजयप्रशस्तिकाव्य' और 'हीरविजयसूरिरास' में भी यही तिथि दी गई है । ऊपर जो लेख दिया गया है उससे यह भी मालूम होता है कि, राजिआ और वजिआ मूल गंधारके रहनेवाले थे, मगर मंदिर हुआ उस समय वे खंभातमें रहते थे। ___ * नेजा यह छोटासा गाँव, खंभातसे लगभग ढाई माइल उत्तरमें है । वर्तमानमें न तो गाँवमें कोई मंदिर है और न किसी श्रावकका घर ही। गाँव भी लगभग बस्ती बिनाहीका है। वहाँ केवल एक सरकारी बागीचा है। - यह गाँव दीव बंदरसे लगभग दो माहल दूर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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