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सूरीश्वर और सम्राट्। कर अनेक कुटुंबोंको मरनेसे बचाया था। अपने नौकरोंको गाँव गाँव भेनकर उनके द्वारा अनेक दरिद्रोंकी धन देकर रक्षा की थी।
कहा जाता है कि, एक बार चिउलके एक खोजगीको और दूसरे कई आदमियोंको गोवाके फिरंगी ( पोटुगीज़ ) लोगोंने कैद कर लिया था। फिरंगियोंका स्वामी उन्हें किसी भी तरहसे छोड़ता न था। आखिरकार वह एक लाख ल्याहरी दंड लेकर छोड़नेको राजी हुआ । मगर यह दंड आवे कहाँसे । अन्तमें खोजगीने राजिया, वजियाका नाम बताया। राजिया फिरंगियोंके स्वामी विजरेल (वॉयसराय)के पास गया, एक लाख ल्याहरी देकर खोजगीको छुड़ा लाया। और उसको कई दिन तक अपने यहां रखने पर चिउल पहुँचा दिया। पीछेसे खोजगीने एक लाख ल्याहरी वापिस राजियाको
दे दी।
एक बार उपर्युक्त खोजगीने बाईस चोरोंको कैद किया था। जब वह उन्हें मारने लगा तब उन्होंने कहा:-" आप बड़े आदमी हैं। हमारे ऊपर दया कीजिए । और आज राजियासेठका बड़े त्योहारका (भादवासुद २)का दिन भी है।
'राजियाके त्योहारका दिन है। यह सुनते ही उसने चोरोंको मारना तो दूर रहा, सर्वथा मुक्त ही कर दिया और कहा कि, वे मेरे मित्र हैं, इतना ही नहीं वे मेरे जीवनदाता भी हैं । उनके नामसे मैं जितना करूँ उतना ही थोड़ा है।
राजिया और वजियाकी तारीफ़, पं० शीलविजयजीने अपनी तीर्थयात्रामें जोकुछ लिखा है उसका भाव यह है,-"श्रावक वजिया और राजिया बड़े प्रतापी हुए । उन्होंने बड़े बड़े पाँच मंदिर कराकर
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