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सूरीश्वर और सम्राट् । राजिया और वजिया सरिजीके परम भक्त थे। इन्होंने सूरिजीके उपदेशसे अनेक समयोचित कार्य किये थे । यद्यपि वे खंभातके रहनेवाले थे; परन्तु रहा करते थे प्रायः गोवाहीमें । गोवामें उनका व्यापार बहुत अच्छा चलता था। इतना ही नहीं वहाँ राजदारमें भी उनका अच्छा प्रभाव था । इन्होंने पाँच तो बड़े बड़े मंदिर बनवाये थे । उनमें से एक खंभातमें है। उसमें *चिन्तामणिपार्श्वनाथकी
दिन खंभातहीमें 'मल्लीनाथरास' बनाया है। उसके अन्तमें खंभातके मुख्य श्रावकोंका परिचय दिया है। उसका भाव यह है,
___ "श्रावक वजिया और राजियाको कीर्ति सारे संसारमें हो रही है । उसने साढ़े तीन लाख रुपये पुण्यार्थ खर्च किये और गाँवगाँवमें अहिंसाधर्मका पालन कराया ॥ २८२ ॥ त्रंबावती निवासी तेजपाल ओसवालने शत्रुजय पर उद्धार कराया उसमें उसने दो लाख ल्याहरी खर्च किये ॥ २८३ ॥ संघवी सोमकरण और उदयकरणने, राजा श्रीमल ओसवालने, ठक्कर जसराज और जसवीरने और ठक्कर कीका वाघाने प्रत्येकने आध लाख रुपये पुण्य. कार्यमें खर्चे ।
* राजिया और वजियाका बनवाया हुआ चिन्तामणिपार्श्वनाथका यह मंदिर अब भी मौजूद है। इस मंदिरके रंगमंडपकी एक भीतमें एक पत्थर पर २८ पंक्तियोंका एक लेख है। उसमें ६१ श्लोकोंमें एक प्रशस्ति दी गई है । प्रशस्ति पूर्ण होनेके बाद अन्तिम दो पंक्तियोंमें यह लिखा है
॥६० ॥ ॐ नमः ॥ श्रीमविक्रमन पातीत सं० १६४४ वर्षे प्रवर्तमानशाके १५०९ गंधारीय प० जसिआ तद्भार्या बाई जसमादे संप्रतिश्रीस्तंभतीर्थवास्तव्य तत्पुत्र प० वजिआ प० राजिआभ्यां वृद्धभ्रातभार्या विमलादे लघुभ्रातभार्या कमलादे वृद्धभ्रातृपुत्रमेघजी तद्भार्या मयगलदे प्रमुख । निजपरिवारयुताभ्यां । श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथश्रीमहावीरप्रतिष्ठा कारिता श्री चिन्तामणिपार्श्वचैत्यं च कारितं कृता च प्रतिष्ठा सकलमंडलाखंडलशाहिश्रोअकब्बरसन्मानित श्रीहीरविजयसूरीशपट्टा
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