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________________ शिष्य परिवार | २४९ चाहता था; परंतु इन्द्रजीने ब्याह न किया । वह यावज्जीवन बालब्रह्मचारी ही रहा । इन्द्रजी एक धनी मनुष्य था । अपनी आयुमें उसने छत्तीस प्रतिष्ठाएँ कराई थीं । इसी गंधारका रहने वाला रामजी श्रीमाली भी सुरिजीका परम भक्त था । उसने सिद्धाचलजी पर सूरिजीके उपदेशसे एक विशाल और सुंदर मंदिर बँधवाया था * । खंभात में संघवी सोमकरण, संघवी उदयकरण सोनी तेजपाल, राजा श्रीमल्ल, ठक्कर जयराज, जसवीर, ठक्कर लाइया, ठक्कर कीका, वाघा, ठक्कर कुँवरजी, शाह धर्मशी, शाह लक्को, दोसी हीरो, श्रीमल्ल, सोमचंद और गाँधी कुंअरजी वगैरह मुख्य थे इसी खंभातके रहनेवाले । * यह मंदिर सिद्धाचलजी पर आदीश्वर भगवान के मंदिर की परिक्रमाके ईशानको में है । चौमुखजोके मंदिरके नामसे पहिचाना जाता है । इसके अंदरके लेखसे मालूम होता है कि, वि० सं० १६२० के कार्तिक सुद २ के दिन इस मंदिर की प्रतिष्ठा हुई थी । और हीर विजयसूरि के उपदेश से गंधारनिवासी श्रीमाली ज्ञातीय पासवीरके पुत्र वर्धमान, और उसके पुत्र सा. रामजी, लहुजी, हंसराज और मनजीने चार द्वारवाला यह शान्तिनाथका मंदिर बनवाया था । * यह हीर विजयसूरिका परम श्रद्धालु श्रावक था । उसने सूरिजी के स्वर्गवास के बाद तत्काल ही उनके ( सूरिजी ) पगलोंकी सिद्धाचलजी पर स्थापना की थी । यह पादुका अब भी ऋषभदेव भगवान के मंदिर के पश्चिममें एक छोटेसे मंदिरमें मौजूद हैं । उस परके लेखसे मालूम होता कि, सूरिजीका स्वर्गवास हुआ उसी वर्ष में यानी सं० १६५२ के मिगसर वद २ और सोमवार के दिन उदयकरणने विजयसेन पुरिके हाथसे, महोपाध्याय कल्याणविजय और पंडित धनविजयजीकी विद्यमानता में प्रतिष्ठा कराई थी । लेखके अन्तिम भागमें सूरिजीने अकबरको प्रतिबोध देकर जो कार्य कराये थे उनका संक्षिप्त वर्णन है । संघवी उदयकरण खंभातका प्रसिद्ध श्रावक था । कवि ऋषभदासने हीरविजयसूरिरासमें स्थान स्थानपर उसका नामोल्लेख किया है । + ऋषभदास कविने वि० सं० १६८५ के पौष शुका १३ रविवार के 32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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