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________________ शिष्य-परिवार. २४३ इसके पहिले तुम्हारे ही दिये हुए उदाहरण पर जरा विचार करो । मैं यह मान लेता हूँ कि, पतिकी मूर्तिको पूजनेसे स्त्रिको कोई लाभ नहीं पहुँचा । मगर यह तो तुम्हें माननाही पड़ेगा कि, जब जब वह स्त्री अपने पतिकी मूर्ति देखती होगी तब तब उसे अपने पतिका और पतिके गुणावगुणका स्मरण हुआ ही होगा। इससे तुम क्या यह स्वीकार न करोगे कि, पतिका और उसके गुणावगुणका स्मरण करनेमें पति-मूर्ति स्त्रीके लिए उपयोगी हुई ! मूर्तिका कितना माहात्म्य है इसके लिए मैं एक दृष्टान्त और देता हूँ। किसी आदमीके दो स्त्रियाँ थीं । एकबार वह परदेश गया तब उसकी दोनों स्त्रियोंने पतिकी मिन्नर मूर्तियाँ स्थापित की। एक स्त्री रोज उठकर अपने पति-मूर्तिकी पूजा करती थी और दूसरी हमेशा उठकर पति-मूर्तिपर थूकती थी । जब पुरुष आया और उसे अपनी स्त्रियोंके व्यवहारोंकी बात मालूम हुई तब उसने अपनी मूर्तिकी पूजा करने वालीको बड़े प्रेमसे व आदरसे रक्खा और थूकने व ठुकराने वालीको अनादर और घृणाके साथ । इससे सहजहीमें यह बात समझमें आजाती है कि, मूर्तिसे कितना असर होता है ? + पद्मसागरजीने अनेक युक्तियों द्वारा मूर्ति और मूर्तिपूजाकी आवश्यक्ताको सिद्ध कर दिया । इससे सारी सभा बहुत प्रसन्न हुई और पद्मसागरनीके बुद्धि-वैभवकी प्रशंसा करने लगी। इसी तरह पद्मसागरजीने 'केवली आहार लेते हैं या नहीं और स्त्रीको मुक्ति होती है या नहीं। इस विषयमें दिगंबर पंडितोंके साथ शास्त्रार्थ करके उन्हें निरुत्तर किया था । + मूर्ति और मूर्ति-पूजाके विषयमें विशेष जाननेके लिए, देखो पृष्ठ १८५-१८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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