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सूरीश्वर और सम्राट् ।
पद्मसागरजी जैसे तार्किक थे वैसे ही विद्वान् भी थे । उन्होंने अनेक ग्रंथ भी रचे हैं । उनमें से मुख्य ये हैं- ' उत्तराध्ययनकथा ' ( सं० १६५७ ) ' यशोधरचरित्र ' ' युक्तिप्रकाश - सटीक ' नय प्रकाश - सटीक (सं० १६३३) 'प्रमाणप्रकाश - सटीक' 'जगद्गुरुकान्य' 'शीलप्रकाश' 'धर्मपरीक्षा' और ' तिलकमंजरीकथा (पद्य) आदि ।
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५- कल्याणविजयवाचक; इनका जन्म लालपुर में वि० सं० १६०१ के आसोज व० ५ को हुआ था । सं० १६१६ के वैशाख व० २ के दिन महेसानेमें उन्होंने हीरविजयसूरि के पाससे दीक्षा ग्रहण की
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थी । सं० १६२४ के फागण वद ७ के दिन उन्हें पंडित पद मिला था। वे जैसे विद्वान् थे वैसे ही व्याख्यानी और तार्किक भी थे । उनका चरित्र बड़ा निर्मल था । इससे श्रोताओं पर उनके व्याख्यानका बड़ा प्रभाव पड़ता था ।
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एकबार राजपीपला में राजा वच्छ* तिवाड़ीके आमंत्रणसे छः हजार ब्राह्मण पंडित जमा हुए थे । राजा उदार मनवाला था । उसने ब्राह्मण विद्वानोंकी इस विराट् सभामें कल्याणविजयजीको भी
* यह राजपीपलाका राजा था । जातिका ब्राह्मण था । ( देखो - आईन-इ-अकबरीके दूसरे भागके अंग्रेजी अनुवादका २५१ वाँ पृष्ठ )' बच्छ, उसका नाम था । और ' तिवाडी ' उसकी अटक ( Surname ) थी । अकबरनामा के अंग्रेजी अनुवाद तीसरे भाग के ६०८ वें पृष्ठमें लिखा गया है कि, तीसरा मुजफ्फर, जो गुजरातका अन्तिम बादशाह था, फतेहपुर सीकरीसे भागकर राजपीपलाके राजा तरवारी ( तिवाड़ी) के पास गया था। मीराते सिकंदरीके गुजराती अनुवादमें-जो आत्मारामजी मोतीरामजी दीवानजीका किया हुआ है - ' तरवारी ' को एक , स्थान बताने की भूल की है । देखो पृष्ठ ४५८ । इसी तरह की भूल मीराते - अहमदी' के गुजराती अनुवाद में भी - जो पठान निजामखाँ नूरखांका किया हुआ है हुई है । देखो पृष्ठ १३८ ।
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