SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ सूरीश्वर और सम्राट् । अनुपस्थितिमें जैसा बुरा परिणाम हुआ बैसा उनकी उपस्थितिमें नहीं हुआ। बड़ोंको बड़ी चिन्ता । सारे समुदायकी रक्षाका कार्य कुछ छोटा नहीं है । बड़ोंको कितने धैर्य और कितनी दूरदर्शितासे कार्य करना चाहिए, इस बातको सूरिजी भली प्रकार जानते थे । इसीसे उस समयके सारे समुदाय पर उनका प्रभाव पड़ता था। - यह पहिले कहा जा चुका है कि, हीरविजयसूरि लगभग दो हजार साधुओंके अधिकारी थे । इन साधुओंमें कई व्याख्यानी थे, कई कवि थे, कई वैयाकरण थे, कई नैयायक थे, कई तार्किक थे, कई तपस्वी थे, कई योगी थे, कई अवधानी थे, कई स्वाध्यायी थे और कई क्रियाकांडी थे । इस तरह भिन्न भिन्न साधु भिन्न भिन्न विषयोंमें दक्ष थे। और इसीसे वे अन्यान्य लोगों पर प्रभाव डाल सकते थे। मूरिजीकी आज्ञानुसार चलनेवालोंमेंसे खास ये थे। - १-विजयसेनसूरि, जब इनके कार्योंका विचार करते हैं तब हम यह कहे विना नहीं रह सकते हैं कि, इनको गुरुके अनेक गुण विरासतमें मिले थे । संक्षेपमें ही हम यह कह देना चाहते हैं कि, वे हीरविजयसूरिजीकी तरह ही प्रतापी थे । छठे प्रकरणसे हमारे इस कथनको पुष्टि मिलती है । उन्होंने अपनी विद्वत्तासे बादशाह पर अच्छा प्रभाव डाला था । वे नाडलाई ( मारवाड़) के रहनेवाले थे। उनकी वंशावली देखनेसे मालूम होता है कि, वे राजा देवड़की पैंतीसवीं पीढ़ीमें हुए थे। उनका नाम जयसिंह था। उनके मातापिताका नाम क्रमशः कोडिमदे और कमाशाह था। वि. सं. १६०४ के फाल्गुन सुदी १५ को उनका जन्म हुआ था। - वे जब सात वर्ष के थे तब उनके पिताने और नौ बरसके हुए तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy