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________________ शिष्य-परिवार २३७ यानी वि. सं. १६१३ ज्येष्ठ सुदी ११ के दिन उन्होंने अपनी माताके साथ सुरतमे विजयदानसूरिजी के पास दीक्षा ली थी। विजयदानसूरिने उन्हें दीक्षा देकर तत्काल ही, हीरविजयसूरि के आधीन कर दिया था । योग्य होने पर सं. १६२६ में खंभातमें उन्हें ' पंडित ' पद, सं. १६२८ के फाल्गुन सुदी ७ के दिन अहमदाबाद में 'उपाध्याय ' पद और 'आचार्य' पद मिला था। (उस समय मूला सेठ और वीपा पारेखने उत्सव किया था) सं. १६३० के पौष कृष्ण ४ को उनकी पाटस्थापना हुई थी । उनकी योग्यताका यह ज्वलंत उदाहरण है कि, उन्होंने योगशास्त्र के प्रथम श्लोक सातौ अर्थ किये थे । कहा जाता है कि, उन्होंने कावी, गंधार चाँपानेर, अहमदाबाद और पाटन आदि स्थानों में लगभग चार लाख जिनबिंबोंकी अपने हाथोंसे प्रतिष्ठा की थी । उनके उपदेशसे तारंगा, शंखेश्वर, सिद्धाचल, पंचासर, राणपुर, आरासर और वीजापुर आदिके मंदिरोंके उद्धार भी हुए थे। उनके समुदाय में ८ उपाध्याय, १५० पंडित और दूसरे बहुत से सामान्य साधु थे । वे जैसे विद्वान् थे वैसे ही वादी भी थे। उनकी वाद करनेकी अपूर्वशक्तिका यह प्रमाण है कि, उन्होंने अकबर के दर्बारमें ब्राह्मण पंडितोंको और सूरत में भूषण * नामक दिगम्बराचार्यको शास्त्रार्थ में निरुत्तर किया था । उनकी त्यागवृत्ति और निःस्पृहता भी ऐसीही प्रशंसनीय थी । ६८ वर्षकी आयु पूर्णकर सं० १६७२ के ज्येष्ठ वद ११ के दिन * - वि० सं० १६३२ के वैशाख सुदी १३ के दिन जयवंत नामक गृहस्थ के किये हुए उत्सव पूर्वक चाँपानेर में प्रतिष्ठा करके सूरिजी सूरत में आये थे । सुरिजीने वह चौमासा सूरतहीमें किया था । चौमासा उरतनेके बाद चिन्तामणि मिश्र आदि पंडितोंको मध्यस्थता में यह शास्त्रार्थ हुआ था । • विजयप्रशस्ति महाकाव्य 'सर्ग ८ वाँ श्लोक ४२-४९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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