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________________ सूरीश्वर और सम्राट्। .. इसके अलावा संघजी नामके एक सद्गृहस्थने पाटनमें दीक्षा ली थी, वह घटना भी उल्लेखनीय है । संघजी पाटनमें एक धनिक व्यक्ति था। उसके यहाँ धनवैभवकी कमी नहीं थी। उसके कुटुंबमें सुशीला पत्नी और पुत्रीके सिवा और कोई नहीं था। उसकी आयु जब बत्तीस बरसकी हुई, तब उसके हृदयमें सूरिजीका उपदेश सुनकर दीक्षा लेनेकी भावना उत्पन्न हुई। वह रोज सूरिनीका उपदेश सुननेके लिए जाता था । एक बार वह उपदेश सुनकर वापिस घर आया और अपनी स्त्रीको बत्तीस हजार महमूंदिका देकर बोला:-" इनको लो और मुझे दीक्षा लेनेकी आज्ञा दो। " उसकी पत्नी भी धर्मपरायणा थी। उसने उत्तर दियाः-" मैं तुम्हें दीक्षा लेनेसे नहीं रोकती; मगर लड़की छोटी है इस लिए प्रार्थना है कि, इसका ब्याह करने के बाद आप दीक्षा संघजीने उत्तर दियाः-" उसके ब्याहका भार क्या मेरे ही ऊपर है ? यदि मैं नहीं होऊँगा तो क्या व्याह नहीं होगा ? काम किसीके बिना नहीं अटकता । प्रत्येकका कार्य उसके पुण्यप्रतापसे होता ही रहता है। यदि इस समय मेरे आयुकर्मकी स्थिति पूर्ण होनाय तो फिर क्या हो ? क्या उसका ब्याह हुए बिना रह जाय ? " पतिका दृढ निश्चय देखकर पत्नीने अनुमति देदी। उसके बाद उनके पाद शुभ मू में संघजीने दौलतखाँकी* बाड़ीमें-बाग म रोक पा । दीक्षा ले ली। सर मरिनीनं भने म यमाओंको दीक्षा दी; उनका उद्धार किया और कहे जे धर्ममा सच्चा सदर बनाना। अगर कवि ऋषभदासके शब्दोंमें कहें तो:--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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