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________________ दीक्षादान । २१५ उसके पास में बैठा हुआ एक गृहस्थ हँसा और बोला: " वर सिंह ! अब तू ब्याह नहीं कर सकेगा; क्योंकि तेरी स्त्री अभी ही तुझे साधु समझकर वंदन कर गई है और वंदनाके द्वारा यह सूचना दे गई है कि, ' अब भी चेत जाओ' अतः तुझे भत्र ब्याह नहीं करना चाहिए । " वरसिंहने उत्तर दिया : " बंधु, मैं तुम्हारी बातको मानता हूँ। मैं अब ऐसा ही करूँगा जिससे वह ( मेरी होनेवाली पत्नी ) और अन्यान्य स्त्रीपुरुष हमेशा ही वंदना किया करें। घर आकर उसने कहा कि, 'मुझे अब ब्याह नहीं करना है ।' उसका सारा कुटुंब जमा हुआ । उसको अनेक तरह से समझाने लगा; दीक्षा नहीं लेनेके लिए विवश करने लगा। मगर उसने किसीकी बात न मानी और कहा :- "यदि तुम मुझे दीक्षा नहीं लेने दोगे तो मैं आत्मघात करूँगा । " बरसिंह अन्नजल छोड़कर घरमें बैठ गया । मातापिताने हारकर उसको दीक्षा लेनेकी आज्ञा देदी | विवाहोत्सवके लिए जो तैयारियाँ हुई थीं उनका उपयोग दीक्षाके लिए किया गया। बरसिंहने उत्सवके साथ दीक्षा ली । दीक्षा ग्रहण करनेके अभिलाषी कमजोर सबक सीखना चाहिए | केवल अजानमें वास्तविक वंद्य बननेके लिये सर्वस्वका त्याग कर देना, क्या कम मातापिता, स्त्रीपुत्रादिके क्षणिक मोहमें लुब्ध होजानेवाले, हृदयवालोंको उक्त घटनासे लोगोंद्वारा बंदन कर जाने पर मनोबल है ? यही वरसिंह धीरे धीरे पंन्यास हुए । और इनके एकसौ और आठ शिष्य भी हुए । 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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