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________________ २२५ सूरीश्वर और समाद। १-श्रीवंत शेठका नाम (क्या रक्खा गया मालूम नही हुआ) २-लालबाईका लाभश्री ७-पुत्रीका सहजश्री ३-धाराका अमृतविजय (-बहिनका रंगश्री ४-मेवाका मेरुविजय ९-बहनोईका शार्दूलऋषि ५-कुंवरजी विजयानंदसुरि१०-भानजेका भक्तिविजय ६-अजाका अमृतविजय इस तरह सारे कुटुंबका दीक्षा लेना आश्चर्यमें नहीं डालेगा ? उपर्युक्त दीक्षा ग्रहण करनेवाले व्यक्तियों में कुंवरजी विशेष प्रसिद्ध हुआ था। कुंवरजी पीछेसे विजयानंदसूरि के नामसे प्रसिद्ध हुए थे। सीरोहीमें ही वरसिंह नामका एक गृहस्थ रहता था। वह बहुत बड़ा धनी था। पूर्ण युवावस्था होनेसे उस समय उसके ब्याहकी तैयारीयाँ हो रही थी । व्याह मँड चुका था । जवारे बो दिये थे। नित्य मंगलगान होने लगे थे । सुबो शाम नगारे बजते थे। जीमनके लिए मिष्टान्न तैयार होने लग रहा था । इस तरह ब्याहके सब सामान तैयार हो गये थे। फेरे फिरनेमें कुछ ही दिन बाकी रहे थे। वरसिंह एक धार्मिक मनुष्य था । हमेशा उपाश्रयमें जाता और धार्मिक क्रियाएँ करता था । लग्नका दिन निकट आनाने और आनंद उत्सव होने पर भी वह अपनी धर्मक्रियाओंको छोड़ता न था। एक दिन वरसिंह उपाश्रयमें बैठा हुआ, सिरपर कपड़ा ओढ़ कर सामायिक कर रहा था । उसका मुँह कपड़से ढका हुआ था। वह इस तरह बैठा हुआ था कि उसे कोई पहिचान न सकता था। उपाश्रयमें साधुओंको वंदना करनेके लिए अनेक स्त्रीपुरुष आते थे और वे साधुओंके साथ ही वरसिंहको भी वंदना कर जाते थे । वरसिंहकी भावीपत्नी भी आई और अन्यान्य स्त्रीपुरुषोंकी भाँति उसको वाँद गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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