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दीक्षादान। बादशाह बोला:-" जाओ सूरिजी महाराजको मेरी ओरसे प्रार्थना करो कि, जहाँ धर्मोन्नतिका लाभ हो वहाँ साधुओंको रहना ही चाहिए । जैताशाह आपके पास दीक्षा ग्रहण करना चाहता है, अतः कृपा करके आप थोड़े दिन ठहर जाइए।"
सुतरां सूरिजीको ठहरना ही पड़ा । जैताशाहकी दीक्षाके लिए उत्सव प्रारंभ हुआ।बादशाहकी अनुमतिसे धूमधामके साथ जैताशाहको सूरिजीने दीक्षा दी। उसका नाम जीतविजयजी रक्खा गया । ये जीतविजयजी 'बादशाही यति । के नामसे प्रसिद्ध हुए।
जेताशाहके समान प्रसिद्ध और बादशाहके कृपापात्र मनुष्यके दीक्षा लेनेसे जैनधर्मकी कितनी प्रभावना हुई होगी, इसका अंदाजा सहजहीमें लगाया जा सकता है। . आचार्य हीरविजयसूरिजीके उपदेशमें ऐसा असर था कि उससे कई वार तो कुटुंबके कुटुंब दीक्षा ले लेते थे।
सरिजी जब सीरोहीमें थे तब उन्हें एक बार ऐसा स्वप्न आया कि, हाथीके चारबच्चे सूंडमें पुस्तक पकड़ कर पढ़ रहे हैं। इस स्वप्नका विचार करनेसे उन्हें विदित हुआ कि, चार उत्तम शिष्य मिलेंगे । कुछ ही दिनों में उनका स्वप्न सच्चा हुआ। रोहके * सुप्रसिद्ध श्रीवंत सेठ और उनके कुटुंबके मनुष्योंने सूरिनीके पास दीक्षा ली । उनमें चार उनके पुत्र (धारो, मेघो, कुंवरजी (कलो) और अनो ) पुत्री, बहिन, बहनोई, भानजा और स्त्री लालबाई ( इसका दूसरा नाम शिणगारदे था ) थे। इन दसोंके नाम दीक्षाके बाद निम्न प्रकारसे रक्खे गये थे।
* आबूसे लगभग १२ माइल पर, दक्षिण दिशामें यह ग्राम है। आर. एम. आर. रेल्वेका वहाँ स्टेशन भी है । स्टेशनका नाम भी रोह'ही है।
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