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सूरीश्वर और सम्राद। में आंबासरोवरके+ पास, रायणवृक्षके नीचे, हीरविजयसूरिसे दीक्षा लेली।
पाटी बनाई हैं । वह उसीके हाथकी लिखी हुई है, उसमें कंसारीपुरका वर्णन करते हुए वह लिखता है,भीडिभंजन जिन पूजवा, 'कंसारीपुर' मांहिं जईइ3; बावीस ब्यंब (बिंब) तिहां नमी, भविक जीव निर्मलहह थईह । बीजइ देहरइ जइ नमुं स्वामि ऋषभजिणंद; सत्तावीस ब्यंब प्रणमता, सुपरषमनि आणंद ॥ ४६ ॥ इससे मालूम होता है कि, ' कंसारीपुर ' में उस समय दो मंदिर थे। एक था ऋषभदेवका और दूसरा था भीडभंजनपार्श्वनाथका । ऋषभदेवक मंदिरमें सत्ताईस प्रतिमाएँ थीं और भीडभंजनपार्श्वनाथके मंदिरमें बाईस ।
सं० १६३९ में सुधर्मगच्छके आचार्य श्रीविनयदेवसूरि खंभात गये थे। तब वे ' कंसारीपुर ' में तीन दिन तक ठहरे थे । उस समय उन्होने वहाँ पार्श्वनाथ के दर्शन किये थे । मनजीऋषिने यह बात विनयदेवमूरिरासमें लिखी है ।
गछपति पांगर्या, परिवारह बहु परवर्या, गुणभर्या कंसारीई आविया ए: पास जिणंद ए अश्वसेनकुलिचंद ए,
वंद ए भावधरीनई वंदीया ए; बंद्या पासजिणेसर भावई त्रिण दिवस थोभी करी; हवइ नयरि आवइ मोती वधावइ शुभ दिवस मनस्यां धरी॥
इसी भाँति विधिपक्षीय श्रीगजसागरसरिके शिष्य ललितसागरके शिष्य मतिसागरने भी सं. १७०१ में खंभातकी तीर्थमाला बनाई है । उसमें भी उन्होंने चिन्तामाणपार्श्वनाथका, आदिनाथका और नेमिनाथका इस तरह तीन मंदिरोंका होना लिखा है ।
__ अभी खंभातके खारवाड़ाके मंदिर में 'कंसारीपार्श्वनाथ'को मूत्ति है । कहाजाता है कि, यह मूर्ति कंसारीपुरसे लाई गई थी । संभव है कि, यही पार्श्वनाथको मूत्तिं पहिले भीडभंजनपार्श्वनाथके नामसे ख्यात हो । ___+ वर्तमानमें 'आंबासरोवर'का नाम 'आंबाखाई है । यह कंसारीपुरसे लगभग आधे माइलकी दूरी पर पश्चिम दिशामें है ।
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