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________________ सूरीश्वर और सम्राट्। पन्यासकी एक साध्वीके पास वह निरन्तर अध्ययन किया करती थी। अध्ययन करते हुए उसके हृदयमें वैराग्य उत्पन्न हुआ। उसने अपनी मातासे दीक्षा लेनेकी बात कही। माताको बहुत दुःख हुआ। उसके पिताने उसे समझाया कि दीक्षा लेनेकी अपेक्षा उसको पालनेमें कितना ज्यादा कष्ट उठाना पड़ता है, उसमें कितने धैर्य और कितनी सहनशीलताकी आवश्यक्ता है । मगर गंगा अपने निश्चय पर दृढ रही। माताने कहा:--" अगर तू दीक्षा लेगी तो मैं भी तेरे साथ दीक्षा ले लूंगी।" अभयकुमारने सोचा,-जब कन्या और पत्नी दोनों मिलकर दीक्षा ले रहे हैं, तब मैं भी क्यों न दीक्षित हो जाऊँ। सोचता था, मगर उसके मार्गमें एक बाधा थी। उसके एक मेघकुमार नामका लड़का था। उसकी उम्र छोटी थी। इससे अभयकुमार सोचता था कि, मेरे बाद लड़केकी क्या दशा होगी । एक दिन उसने कहा:--" वत्स ! तेरी बहिन, तेरी माता और मैं तीनों आदमी दीक्षा लेंगे। तूने सुखपूर्वक संसारमें रहना और आनंद करना।" मेघकुमारने उत्तर दिया:-" पिताजी ! आप मेरी चिन्ता न कीजिए । मैं भी आपहीके साथ दीक्षा लेनेको तैयार हूँ। अपने मातापिता और अपनी बहिनके साथ मुझे दीक्षा लेनेका अवसर मिलता है यह तो मेरे लिए सौभाग्यकी बात है । ऐसा अपूर्व अवसर मुझे फिर कब मिलेगा ?" पुत्रकी बातसे अभयराजको बहुत प्रसन्नता हुई । आत्मकल्याणके सोपान पर चढ़नको तत्पर बने पुत्रके शब्दोंसे उसके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा। मेघकुमारकी वैराग्य भावना देख कर उसकी काकीको मी दीक्षा लेनेकी इच्छा हुई । एक एक करके सारे कुटुंब को। ( पाँच आदमियोंको) दीक्षा लेनेके लिए तैयार होते देख कर अभयराजके चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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