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________________ दीक्षादान । डालनेसे पाठकोंको विदित होगा कि, उस समयके लोग आत्मकल्याण करनेके लिए कितने उत्सुक रहते थे। पाटनमें अभयराज नामका एक ओसवाल गृहस्थ रहता था। वह कालान्तरमें अपने कुटुंब सहित दीव बंदर में जा रहा । अभयराज दीवबंदरका एक बहुत बड़ा व्यापारी समझा जाता था । कारण-चार तो उसके पास वाहण-जहाज ही थे । उसने अपने ही उद्योगसे धन कमाया था । उसकी स्त्रीका नाम अमरादे था। उसके गंगा नामक एक कन्या भी थी। वह बालकुँवारी थी। कमलविजयजीx * ये बड़े कमलविजयजीके नाम: प्रसिद्ध हैं । उनका मूल निवास द्रोणाड़ा (मारवाड़) था । ये छाजेड गोत्रके ओसवाल थे। उनके मातापिताका नाम गेलमदे और गोविंदशाह था । उनका जन्म नाम केल्हराज था। बारह वर्षकी आयुहीमें उनके पिताका स्वर्गवास हो गया था । इसलिए वे अपनी माताके साथ जालोर (मारवाड़) गये । वहाँ पंडित अमरविजयजीके सहवाससे उनके हृदयमें दीक्षा लेनेकी इच्छा उत्पन्न हुई थी । बड़ी कठिनतासे उन्होंने मातासे आशा लेकर धूमधामके साथ पं. अमरविजयजीके पास दीक्षा ली । नाम कमलविजयजी रक्खा गया । थोड़े ही दिनोंमें उन्होंने आगो-शास्त्रोंका अच्छा अभ्यास कर लिया । उनको योग्य समझ कर आचार्य श्रीविजयदानसूरिने उनको गंधारमें पंडित पद दिया (वि.सं.१६१४) में उन्होंने मारवाड़, मेवाड और सोरठ आदि देशोमें विहार किया था, और अनेकोंको उपदेश दे कर दीक्षित किया था । उनकी त्यागवृत्ति बहुत ही प्रशंसा नोय थी । महीनेमें छ: उपवास तो वे नियमित किया करते थे । नित्यप्रति ज्यादासे ज्यादा, वे दिनभरमें केवल सात चीजोंका उपयोग करते थे। वि. सं. १६६१ में उन्होंने आचार्य श्रीविजयसेनसूरिके आदेशसे महेसानेमें चातुर्मास किया था। वहाँ आषाढ सुदी १२ के दिन उनके शरीरमें व्याधि उत्पन्न हुई। यद्यपि सातदिनका उपवास करने के बाद कुछ दिनके लिए उनका रोग शान्त हुआ था, तथापि उसी महीनेके अन्तमें आषाढ सुद १२. के दिन ७२ वर्षकी आयुमें उनका स्वर्गवास हो गया । (विशेषके लिए एतिहासिक राससंग्रह, भा. रा. १२९ देखो। ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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