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________________ ૨૨૨ सूरीश्वर और सम्राट् । साथ तपागच्छमें दाखिल हुए, और हीरविजयमूरिसे दीक्षित हुए। उन तीसमें मुख्य आंबो, भोजो, श्रीवंत, नाकर, लाडण, गांगो, गणो (गुणविजय) माधव और वीरआदि थे। उनके गृहस्थ अनुयायी दोसी श्रीवंत, देवजी, लालजी और हंसराज आदि भी सूरिजीके अनुयायी बने । यह बात अभूतपूर्व हुई । इससे जैसे श्वेतांबर मूर्तिपूजकोंकी प्रशंसा हुई वैसे ही हीरविजयसूरिजीके प्रभावमें भी बहुत ज्यादा अभिवृद्धि हो गई । मेघनी आदि मुनियोंकी प्रशंसा इनसे भी ज्यादा दुई। क्योंकि उन्होंने सत्यका स्वीकार करनेमें लोकापवादका लेशमात्र भी भय न रक्खा। चरित्रनायक सूरिनी गीतार्थ थे । वे उत्सर्ग और अपवादके मार्गको जानते थे । शासनके प्रभावक थे । उनको न था शिष्योंका लोभ और न थी मानकी अभिलाषा । उनके अन्तःकरणमें केवल यही भावना रहती थी कि, जगजीवोंका कल्याण कैसे हो? जैनधर्ममें प्रभावक पुरुष कैसे पैदा हों ? और स्थान स्थान पर जैनधर्मकी विजयवैजयन्ती कैसे फहरावे ? और इसीलिए उनके उपदेशका इतना प्रभाव होता था कि, अनेक बार अनेक लोग उनके पास दीक्षा लेनेको तत्पर होते थे । शुद्ध हृदय और परोपकारबुद्धिप्रेरित उपदेश असर क्यों न करेगा ? वि. सं. १६३१ में हीरविजयमूरि जत्र खंभातमें थे, तब उन्होंने एक साथ ग्यारह मनुष्योंको दीक्षा दी थी। यह और ऊपरकी बात यही प्रमाणित करती हैं । इन दोनों बातों पर विशेष रूपसे प्रकाश कि, मेघजीऋषिके साथ कितनीने दीक्षा ली थी । यह संभव है कि, पहिले मेघजीके साथ तीस तत्पर हुए हों और पीछेसे दो तीन निकल गये हों और लेखकाने निकले हुओंको कम करके संख्या लिखी हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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