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सूबेदारों पर प्रभाव ।
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प्रभाव पड़नेसे अहमदाबादके श्रावक बहुत प्रसन्न हुए। अपनी प्रसन्नता व्यक्त करनेके लिए उन्होंने बहुतसा धन खर्चकर महोत्सव भी किया।
आजमखाँको मूरिजी पर बहुत श्रद्धा हो गई थी। इसलिए जब उसको अवकाश मिलता तभी सूरिजीके पास जाता और उनके दर्शन करके व अमृतमय वचन सुनके आनंद मानता।
कहाजाता है कि, सरिजीने वि० सं० १६६१ में जब ऊनामें चौमासा किया था तब भी वह हज ( मक्काकी यात्रा ) से वापिस लौटते वक्त सूरिजीके दर्शनार्थ गया था । उस समय उसने सातसौ रुपये सूरिजीके भेट किये । सूरिजीने उसे समझाया,-" हम लोग कंचन और कामिनीके सर्वथा त्यागी हैं। इसलिए हम ये रुपये नहीं ले सकते " आजमखाने वे रुपये दूसरे सन्मार्गमें खर्च करदिये । वहाँ भी सूरिजीका उपदेश सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुआ था।
कासिमखाँ ।* वि० सं० १६४९ में सूरिजी पाटन गये थे। उस समय वहाँका सूबेदार कासिमखाँ था।
जूनागढ फतेह करनेके बाद वि० सं० १६५० में आज़मखाँ कुटुंब परिवार, दासदासियों और सौ नोकरोंको साथमें ले, सरकारी ओहदे और अमीरीको छोड़ मक्का गया था । मक्कासे पीछे लौटते वक्त वह सूरिजी से वि० सं० १६५१ में मिला था। इससे मालूम होता है कि, वह मकामें लगभग एक बरस तक रहा था । विशेषके लिए आईन-इ-अकबरी (ब्लॉकमॅनकृत अंग्रेजी अनुवाद ) में पृ. ३२५ से ३२८ तक देखो ।। . * यह कुंदलिवालबारहक खान सैयदमुहम्मदका पुत्र था। यह पहिले खान आलमकी मातहतीमें नौकर रहा था । इसन मुहम्मद-हुसेन-मिर्जाका -जो मुहम्मद अज़ीज़ कोकासे हार कर दक्षिणमें भागा थापीछा करनेमें वीरता दिखाई थी। धीरे धीरे उसकी तरकी होती रही । अन्तमें वह
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