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________________ २०० सूरीश्वर और सम्राट्। कि, मुसलमानोंके सिवा दूसरा कोई भी आदमी खुदाके पास नहीं जा सकता है।" इस कथाको सुनकर सूरिजी और उनके साथके साधु हँसे । उन्हें हँसते देखकर आजमखाँने पूछा:-" आप हँसते क्यों हैं ? सरिजीने उत्तर दियाः-" आपकी इस कथाको सुनकर हँसी न आवे तो और क्या हो ? जिस मनुष्यमें थोड़ीसी भी समझ है, वह आपकी इस कथाको सच मान सकता है ? मनुष्य शरीर छोड़कर खुदाके पास जानेको रवाना हो और जंगलको पार न कर सकनेसे वापिस लौट आवे या खुदाके पास पहुँचकर उसे रत्नजडित सिंहासन पर बैठा देखे और वहाँकी निशानीके तौर पर रास्तेसे मिरचीका झूमका बगलमें दका कर लेता आवे, ये बातें क्या हवाम महल चुनानेकीसी नहीं हैं ? खुदा क्या शरीरवाला है जो स्वर्णसिंहासन पर जा बैठा ? जानेवाला मुसलमान जब शरीर ही यहाँ रख गया था तब उसके बगल फिर कहाँसे आगई थी जिसमें दबाकर मिरचका झूमका लेता आया था ! " आजमखाँ भी खिलखिला कर हँस पड़ा । उसने स्पष्ट कहा कि, मैंने सचमुच ही यह एक हवाई किलाही खड़ा किया था। उसने सूरिनीकी बहुत प्रशंसा की और कहा:--"मेरे लायक कोई काम हो तो फर्माइए ।” सूरिजीने झगडूशाह नामके श्रावकको-जो कैदमें था-छोड़ देनेके लिए कहा । आज़मखाने तत्काल ही उसको छोड़ दिया । उस पर एक लाखका जुर्माना किया था वह भी माफ कर दिया। उसके बाद बड़ी धूमधामसे आजमखाने सरिजीको उपाश्रय पहुँचाया। झगडूशाहके छूटनेसे और आजमखाँ पर सूरिजीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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