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________________ LAVALARINA सूबेदारों पर प्रभाव। करवा दिये थे । सुरतानने सूरिजीके उपदेशसे अन्याय नहीं करनेका भी निश्चय कर लिया था । इनके अलावा सूरिजीके तपोबलसे एक महत्त्वकी बात और भी हुई थी। वह यह थी उसने विना ही कारण निर्दोष सौ श्रावकोंको अपराधी ठहरा कर कैद कर दिये थे। इससे समस्त संघमें हाहाकार मच गया था । संघके मुखियोंने अनेक प्रयत्न किये मगर मुरतानने श्रावकोंको नहीं छोड़ा। एक वार सूरिजीके साथके साधु बाहिर दिशाजंगल गये और बापिस आकर 'इर्यावहिया'+ किये बिना ही अपने अपने कामोंमें लंग गये । सूरिजीने उनकी उस भूलको देखा और संध्याको सबसे कहा कि,-" कल तुम सबको 'आंबिल'x करना होगा, क्योंकि आज तुमने, दिशा जाकर 'इर्यावहिया' नहीं की है।" सारे साधुओंने इस प्रायश्चित्तको स्वीकारा । दूसरे दिन समस्त साधुओंने ' आंबिल ' की तपस्या की । मूरिजी के साथ जब साधु आहार करनेके लिए बैठे तब उन्हें मालूम हुआ कि, आज सूरिजीने भी 'आंबिल ' की ही तपस्या की है। उन्होंने पूछा:--" आज आपको आंबिल किस बातका है ?" सूरिजीने उत्तर दिया:-" आज मेरा *मातरा पडिलेहण किये बिना परठा था। उस दिन सब मिला कर अस्सी आंबिल हुए। इस +-जैन साधु जब पेशाब या पाखाने जाकर आते हैं, उस समय, जाते आते मार्गमें जितना चाहिये उतना उपयोग नहीं रहने के कारण,-उपयोग स्खलनाके लिए-गुरुके पास प्रायश्चित्त रूप जो क्रिया करते है उसको इरियावहिया कहते हैं। ___x आंबिल के लिए पेज १०७ का फुटनोट देखो । * साधुलोग पेशाबको मातरा, कहते हैं। जनसाधु गटर--मोरी आदि स्थानों में पेशाव नहीं करते । वे खुली जगहमें-जहाँ जीव-जन्तु नहीं होते हैं-पेशाव करते हैं । या किसी कुंडीमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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