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________________ सूरीश्वर और सम्राद। प्रकार आंबिल करने और करानेका सरिनीका आन्तरिक हेतु जुदा था। सूरिजीकी इच्छा थी,-जो श्रावक आफतमें पड़े हैं उनको किसी भी तरहसे छुड़ाना । सूरिजीको आंबिलकी तपस्या पर बहुत श्रद्धा थी । जब जब वे कोई महत्त्वका कार्य करना चाहते थे तब तब वे प्रारंभमें आंबिल ही किया करते थे । एक तरफ़ सूरिजीने इस तरह आंबिलकी तपस्या की और दूसरी तरफ सीरोहीके महाराव सुरतानसे मिल कर उसे, निर्दोष कैदी श्रावकों को छोड़ देनेका उपदेश दिया । सूरिजीके उपदेशका सुरतानके हृदयमें असर हुआ और उसी दिन उसने शामके वक्त सबको मुक्त कर दिया। सुल्तान हबीबुल्लाह । विहार करते हुए सूरिजी एक बार खंभात गये। वहाँ हबीबुल्लाह नामका एक खोजा रहता था। उसकी एक वक्तकी खूराक लगभग एक मन थी। उसका शरीर खूब मोटा ताजा था। उसने धनका बहाना करके सूरिजीका बहुत अपमान किया। सरिजीका द्वेषी महिआ नामका एक व्यक्ति भी उससे मिल गया । इससे वह सूरिनीको ज्यादा सताने लगा । परिणाम यह हुआ कि, उसने सूरिनीको शहरके बाहिर निकलवा दिया । इससे समस्त जैनसमाजमें खलबली मच गई। मूरिजीके इस अपमानको सब गच्छके साधुओंने अपना अपमान समझा । वे भी गाँवके बाहिर चले गये और सूरिजीके पास जाकर रहे । सूरिनीके अपमानका कृत्य वास्तवमें अक्षम्य था । इसका प्रतीकार करना जुरूरी था । स्वच्छंदी और निरंकुश मनुष्योंका मद यदि उतार करके निदोष जमीनमें छिड़क देते हैं जिससे वह जल्दी सूख जाता है । दुर्गध नहीं फैलती है और जीवोत्पत्ति भी नहीं होती है। ऐसा करनेको 'मातरा परठना' कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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