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सूरीश्वरे और समाद
इस प्रकार खानखाना पर भी सूरिजीने अपना प्रभाव डाला था।
महाराव सुरतान। सूरिजी विहार करते हुए जब सीरोही गये थे तब वहांके प्रतापी राजा महाराव सुरतान पर भी उन्होंने अच्छा प्रभाव डाला था। रावसुरतानका समागम करके मूरिजीने उसको अच्छा प्रबोध दिया था। कई 'कर'-जो प्रजा पर केवल जुल्म थे-भी उन्होंने बंद
(१०) वायु (११) वनस्पति (१२) त्रस; इन छः प्रकारके जीवोंको कष्ट न पहुँचाना, (१३) राजपिंड ग्रहण न करना-अर्थात् राजाके वहाँसे भोजन ग्रहण न करना । (१४) सोना चाँदी, काँसा, पीतल आदि धातुओंके निर्मित बर्तनोंमें भोजन न करना । ( १५) पलंग व सुखदायी बिस्तरोपर शयन नहीं करना । (१६) गृहस्थके घरमें नहीं बैठना (१७) स्नान नहीं करना और ( १८) शंगार नहीं करना । ___* यह वि० सं० १६२८ में सीरोहीकी गद्दी पर बैठा था । उस समय उसकी आयु सिर्फ १२ वर्षेकी थी । इसको अनेक बार राजपूतों और बादशाहकी फौओंके साथ युद्ध करना पड़ा था । उनमें कई वार उसे हारना भी पड़ा था । राज्य गद्दी भी छोड़नी पड़ी थी । परन्तु अन्तमें उसने अपनी वीरतासे राज्य वापिस ले लिया था । वह प्रकृतवीर था। स्वाधीनता, महाराणा प्रतापसिंहकी भाँति उसे भी बहुत प्यारी थी । इसलिए अपने जीवनका बहुत बड़ा अंश उसे युद्धोंमें ही बिताना पड़ा था । कहा जाता हे कि, उसने सब मिलाकर ५१ युद्ध किये थे। जब वह आबू पहाड का आश्रय ले कर युद्ध करता था तब बड़ीसे बड़ी सेनाको भी वह तुच्छ सम. झता था । जैसा वह उदार था वैसा ही बहादुर भी था । उसने अनेक गाँव दानमें दिये थे । उसके मिलनसार स्वभावके कारण अनेक राजाओंसे उसकी मित्रता थी
इसके संबंध जो विशेष जानना चाहते हैं वे ५० गौरीशंकर हीराचंद ओझाकृत ' सीरोहो राज्यका इतिहास ' के २१७ से २४४ तकके पृष्ठ देखें।
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