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________________ सूबेदारों पर प्रभाव। १८५ " मूर्तिकी पूजासे लाभ यह है कि, उसकी पूजासे उसके दर्शनसे मनुष्य अपने हृदयको पवित्र बना सकता है। मूर्ति के दर्शनसे उस व्यक्तिके-परमात्माके-जिसकी वह मूर्ति होती है-गुणयाद आते हैं। उन गुणोंका स्मरण करना या उसके अनुसार आचरण करनेका प्रयत्न करना सबसे बड़ा धर्म है । मनुष्योंका हृदय वैसा ही बनता है, जैसे उन्हें संयोग मिलते हैं। वेश्याके पास आनेसे पाप लगता है । इसका कारण क्या है ? क्या वेश्या उसको पाप दे देती है ? वेश्याको तो पापका ज्ञान भी नहीं होता है। कारण यह है कि, वेश्यापाप नहीं देती मगर उसके पास जानेसे पुरुषका हृदय मलिनअपवित्र हो जाता है। अन्तःकरणका मलिन होना ही पाप है। इसी भाँति यद्यपि परमात्माकी मूर्ति हम को कुछ देती लेती नहीं है; तथापि उसके दर्शन-पूजनसे मनुष्यका अन्तःकरण निर्मल-शुद्ध होता है। अन्तःकरणका शुद्ध होना ही धर्म है।" यह और इसी तरहकी दूसरी अनेक युक्तियोंसे मूरिजीने मूर्तिपूजाका प्रतिपादन किया। खानखाना बहुत प्रसन्न हुआ । उसने मुक्तकंठसे सूरिजीकी प्रशंसा करते हुए कहा:-" सचमुच आप ऐसी ही इज्जतके काबिल हैं जैसि कि आपको अकबर बादशाहने बख्शी है। मैं आपके मुणोंकी दाद दिये विना नहीं रह सकता ।" . तत्पश्चात् उसने कई मूल्यवान पदार्थ सूरिजीके समक्ष रख कर उन्हें ग्रहण करनेका आग्रह किया । सूरिजीने उन्हें साधुधर्भके लिए अग्राह्य बताकर साधुओंके पालने योग्य १८ ४ बातोंका विवेचन किया। ___x जैनसाधुओंको निम्नलिखित १८ बातें पालनी चाहिए। (१) हिंसा (२) झूठ (३) चोरी ( ४ ) अब्रह्म . ५) परिग्रह; इन पाँचोंसे दूर रहना । (६) रात्रिभोजन न करना (७) पृथ्वी (0) जल (९) अनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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