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________________ - विशेष कार्य सिद्धि। उनकी वाणीमें प्रभाव था; प्रत्येक सुननेवालेके हृदयपर आपका उपदेश असर करता था । इसपर भी आपमें एकसौ आठ अवधान करनेकी जो शक्ति थी वह तो अद्वितीयही थी। उन्होंने अकबरसे मिलनेके पहिले अनेक राजा महाराजाओंको अपनी विद्वत्ता और आश्चर्योत्पादक शक्तिसे अपना सन्मान कर्ता बनाया था; तथा अनेक विद्वानोंसे शास्त्रार्थ करके अपना विजय-डंका बनाया था। अकबरको भी उन्होंने बहुत प्रसन्न किया था। वे प्रायः बादशाहसे मिलते थे और उपदेश एवं अवधान करके बादशाहको चमत्कृत करते थे । उन्होंने 'कृपारसकोश' नामका एक सुंदर संस्कृत काव्य भी रचा था। उसमें १२८ श्लोक हैं। श्लोक बादशाहने जो दयाके कार्य किये थे उनके वर्णनसे परिपूर्ण हैं । यह काव्य वे अकबर बादशाहको सुनाते थे। बादशाह बड़ी उत्सुकता और प्रसन्नता के साथ, अपनी प्रशंसाके इस काव्यको सुनता था । हीरविजयसूरिकी तरह शान्तिचंद्रजीको भी बादशाह बहुत मानता था । इसीलिए इनके आग्रहसे उसने एक ऐसा फर्मान निकाला था, जिसकी रूहसे, बादशाहका जन्म जिस महीनेमें हुआ उस सारे महीनेमें, रविवार के दिनोंमें, संक्रान्तिके दिनोंमे, और नवरोजके दीनोंमें कोई भी व्यक्ति जीवहिंता नहीं करसकती थी। ___कहा जाता है कि, बादशाह जब लाहोरमें था तब शांतिचंद्रजी भी वहां थे । ईदके पहिले दिन वे बादशाह के पास गये । अवसर देखकर उन्होंने बादशाहको कहा:--" मैं यहाँसे विहार करना चाहता हूँ।" बादशाहने सविस्मय पूछा:-" सहसा यह विचार कैसे हो गया ? " उन्होंने उत्तर दिया:-" मैंने सुना है कि, कल ईद है । सैकड़ों नहीं, हनारों नहीं, बल्कि लाखों जीवोंका कल वध होने वाला है । उन पशुओंका मृत्यु-आर्तकंदन मैं न सुन सकूँगा । मेरा 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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