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सूरीश्वर और सम्राट् ।
हृदय इस हत्या के नामसे ही काँप रहा है । यही कारण है कि, मैं आपही यहाँ से चला जाना चाहता हूँ ।
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शान्तिचंद्रजीने उस समय ' कुरानेशरीफ़ की कई आयतें बताई, जिनका यह अभिप्राय था कि, रोजे सिर्फ शाक और रोटी खानेहीसे दर्गाह -इलाही में कुबूल हो जाते हैं । हरेक रूह - जीव पर महरबानी रखना चाहिए ।
यद्यपि बादशाह इस बात से अपरिचित नहीं था । वह भली प्रकारसे जानता था - मुख्यतया हीरविजयसूरिजीसे मिलने बाद उसको निश्चय हो गया था कि, जीवों को मारने में बहुत बड़ा पाप है । 'कुरानेशरीफ' में भी जीव-हिंसाकी आज्ञा नहीं है। उसमें भी महेर - दया करनेकी ही आज्ञा दी गई है; तथापि विशेषरूपसे निश्चय करने के लिए, अथवा अपने सर्दार- उमरावोंको निश्चय करादेनेके लिए उसने अबुल्फ़जुलको, अन्यान्य मौलवियोंको और सर्दार- उमरावोंको बुलाया और मुसलमानोंके माननीय धर्मग्रंथोंको पढ़वाया । तत्पश्चात् उसने लाहोर में ढिंढोरा पिटवाया कि, -कल - ईदके दिन कोई भी आदमी किसी जीवको न मारे ।
बादशाह के इस फर्मान से करोड़ों जीवोंके प्राण बचे | श्रावकोंने स्वयं शहरमें फिरकर इस बातकी निगहबानी की कि, कोई मनुष्य गुप्त रूपसे किसी जीवको न मार डाले ।
इसके बाद उन्होंने बादशाहको उपदेश दे कर मुहर्रमके महीनेमें और सूफी लोगोंके दिनों में जीवहिंसा बंद कराई । 'हीरसौभाग्य' काव्य के कर्त्ताका कथन है कि बादशाहने अपने तीन लड़कों-सलीम, ( जहाँगीर ) मुराद और दानिआलका जन्म जिन महीनोंमें हुआ था उन महीनोंके लिए भी जीवहिंसा - निषेधका फर्मान निकाला था । इस
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