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प्रतिबोध ।
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अन्तमें सूरिजीका निश्चय देखकर बादशाहने उन्हें गुजरात जानेकी अनुमति दी । मगर इतनी याचना जरूर की कि, विजयसेनसूरि यहाँ पहुँचे तबतक समय समय पर मुझे उपदेश देनेके लिये आप अपने एक उत्तम विद्वान् शिष्यको अवश्यमेव छोड जाइए ।
बादशाहके इस आग्रहसे सुरिजीने श्रोशान्तिचंद्रजीको बादशाह के पास छोड़ा और आपने ' जेताशाह ' को दीक्षा देकर वहाँ से विहार किया और वि. सं. १६४२ का चौमासा अभिरायाबाद में किया ।
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