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प्रतिबोध ।
उसने कहाः-" महाराज ! मेरे जितने सेवक हैं वे सारे मांसाहारी हैं । इसलिए उन्हें आपका बताया हुआ जीवदयामार्ग अच्छा नहीं लगता । वे कहते हैं कि,-अपने पुरुषा जिस कामको करते आये हैं उसे छोड़ना अनुचित है । एकवार सारे सर्दार, उमराव इकट्ठे हुए थे उन्होंने मुझसे कहा,-' अपने बापका सच्चा बेटा वही होता है जो पहिले से जो मार्ग चला आता है उसको नहीं छोड़ता है।' उन्होंने एक उदाहरण भी दिया था । वह यह है,
किसी देशकी राजधानीके पाटनगरके पास एक पहाड़ था। वहाँके बादशाहने हुक्म दिया कि, यह पहाड़ हवा रोकता है इसलिये इसको नष्ट कर दो । लोगोंने सुरंगें लगालगा कर उस पहाड़को खोद डाला । उस जगह खुला मैदान हो गया। वहाँसे थोड़ी ही दूरी पर समुद्र था । एक वार समुद्र चढ़ा । पहिले उसका पानी पहाड़से रुका रहता मगर इस समय पहाड़के अभाव पानीका प्रबल चढ़ाव शहरमें फिर गया । लोग बह गये, नगर नष्ट हो गया। तात्पर्य कहनेका यह है कि, प्राचीनकालसे स्थित पहाड़को बादशाहने तुड़वाडाला उसका परिणाम सिर्फ बादशाहहीको नहीं बल्कि सारे नगरको भोगना पड़ा।"
___ मुझे उमरावोंने जब यह किस्सा सुनाया तब मैंने भी उनकी बातका खंडन और अपनी बातका मंडन करनेके लिए एक कथा सुनाई । मैंने कहाः
"सुनो, एक बादशाह था वह अंधा था। उसके एक लड़का हुआ । वह भी अंधा ही हुआ। मगर उसके पोता जन्मा वह सूझतादोनों आँखोंवाला था । अब बताओ कि, तुम्हारे कथनानुसार उसको अंधा होना चाहिए या नहीं ! क्योंकि उसके बाप और दादा तो अंधे थे।"
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