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________________ RAN सूरीश्वर और सम्राट् । एक दूसरी बात और भी है,-"मेरी सातवीं पीढ़ीके महापुरुष तैमूर थे। वे पहिले पशुओंको चराया करते थे । एकवार एक फकीर यह आवाज देता हुआ आया कि,-'नो मुझे रोटी दे मैं उसे वादशाहत हूँ।' तैमूरने रोटी दी । फकीरने उनके सिरपर मुकुट धरकर कहा:-" जा, मैंने तुझे बादशाह बनाया । " . "एकवार एक चरवाहेने किसी दुबले घोड़के चाबुक मारा । उसका तिरस्कार करनेके लिए हजारों चरवाहे जमा हो गये । तैमूर भी उन्हींमें था। वे जिस जंगलमें जमा हुए थे उसीमेंसे एक काफिला ऊँटों पर माल लाद कर गुजरा । तैमूरने चरवाहोंको उकसाकर सारा माल लूट लिया । वहाँ के बादशाहके पास फर्याद पहुंची। बादशाहने फौज भेजी । तैमुरकी सर्दारीमें चरवाहोंने फौजका मुकाबिला किया और फौजको भगा दिया। बादशाह स्वयं इन चरवाहे डाकूओंका दमन करने आया । मगर बादशाह वहीं काम आया और तैमूर वहाँका बादशाह बन बैठा । " "बताओ हमें भी तैमूरकी प्रारंभिक अवस्थाके माफिक गुलामी करनी चाहिए या बादशाही ? "उमराव, खान, वजीर, सर्दार वगेरा नितने वहाँ बैठे थे सभीने यही उत्तर दिया कि,-अमुक रीति पुरानी हो तो भी यदी वह खराब हो तो त्याज्य है।" " महाराज ! वास्तविक बात तो यह है कि लोग मांसाहार केवल अपनी रसना इन्द्रियको तृप्त करनेके लिए करते हैं । वे यह नहीं देखते कि, हमारी तुच्छ तृप्ति के लिए बिचारे कितने निर्दोष जीवोंका संहार हो जाता है।" " महाराम ! मैं दूसरोंकी क्या कहूँ, मैंने खुदने भी ऐसे ऐसे पाप किये हैं कि, जैसे पाप संसारमें शायद ही किसी दूसरेने किये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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