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________________ आमंत्रण। फैलगई । लोगोंका आना जाना शुरू हो गया। दूसरी ओर सुरिजीके सामैये-अगवानी के लिये थानसिंह, मानुकल्याण और अमीपाल आदि गृहस्थोंने बादशाहसे मिलकर शाही बाजे, हाथी, घोड़े आदि जो जो चीजें जरूरी थीं उन उन सब चीजोंका प्रबंध कर लिया। आज ज्येष्ठ सुदी १२ (वि. सं. १६३९) का दिन है। सवेरे हीसे तमाम शहरमें नवीनताके चिहन दिखाई दे रहे हैं। कई अपने बालबच्चों को उत्तमोत्तम आभूषण और वस्त्र पहिनाने लग गये हैं। कई अपने हाथीघोड़ोंका शंगार करनेमें लग रहे हैं । कई रथोंकी तैयारी कर रहे हैं । कई तो सूर्य उगनेके पहिले अँधेरे अँधेरे ही, यथासंभव, जितनी हो सके उतनी दूर सूरिजीके सामने जानेके लिए, घरसे रवाना हो चुके हैं । इस तरह नौ बजते बजते नगरके बाहिर हाथी, घोड़े, ऊँट, रथ और निशान आदि खास लवाजमे सहित-जो खास बादशाहकी तरफसे मिले थे-लोग सूरिजीकी अगवानीके लिए जमा हो गये । थोड़ी ही देरमें साधुओंका एक झुंड लोगोंको दिखाई दिया । लोग हर्षोल्लाससे सूरिजीके सामने जाने लगे। उस समय सूरिजीके साथ, विमलहर्ष उपाध्याय, शान्तिचंद्र गणि, पंडित सोमविजय, पंडित सहजसागर गणि, पंडित सिंहविमल गणि, पं. गुणविजय, पं. गुणसागर, पं. कनकविजय, पं. धर्मसीत्रषि, पं. मानसागर, पं. रत्नचंद्र, काहर्षि, पं. हेमविजय, ऋषि जगमाल, पं. रत्नकुशल, जानकर उनका सत्कार करनेके लिए उसने अपनी सेना भेजी थी । सुतरां अभिरामाबाद फतेहपुर सीकरीसे छः कोस ( बारह माइल) दूर था । यह बात निर्विवाद सिद्ध होती है । कारण- वह अन्तिम मुकाम था । जैसा कि ऊपर बताया गया ह । ओर इसी हेतुसे, इसवक्त इस नामका कोई गाँव न होने, और 'ट्रिग्नो मेटिकलसर्वे' में भी इस नामके किसी गाँवका उल्लेख न होने पर भी उस समय उपर्युक्त नामका गाँव होनेसे सूरिजीके विहारके नकशेमें यह नाम दिया गया है । 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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