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________________ सूरीश्वर और सम्राट् । पं. रामविजय, पं. भानविजय, पं. कीर्तिविजय, पं. हंसविजय, पं. जसविजय, पं. जयविजय, पं.लाभविजय, पं. मुनिविजय, पं. धनविजय, पं. मुनिविमल और मुनि जसविजय आदि ६७ साधु थे। इन साधुओंमें कई वैयाकरणथे और कई नैयायिक, कई वादी थे और कई व्याख्यानी, कई अध्यात्मी थे और कई शतावधानी, कई कवि थे और कई ध्यानी । इस भाँति भिन्न भिन्न विषयोंमें असाधारण योग्यता रखने वाले थे । सूरिजी दर्वाजेके पास आये । तमाम संघने उन्हें सविधि वंदना की । कुमारिकाओंने उन्हें सोनेचाँदीके फूलोंसे बधाया ।कई सौभागवतियोंने मोतियोंके चौक पूरे। इस भाँति शुभ शकुनों महित सूरिजी जिप्स वक्त फतेहपुर-सीकरीके एक महल्लेमें हो कर गुजर रहे थे, उसी समय उस महल्लेमें रहनेवाला एक सामन्त-जिसका नाम जगन्मल्ल कछवाह था-आ कर सूरिजीके चरणोंमें गिरा और अपने महलको, मूरिजीके चरणस्पर्शसे पवित्र करनेके शुभ उद्देश्यसे, उन्हें अपने महसमें ले गया। इतना ही नहीं उसने उन्हें एक रात और दिन अपने यहाँ रक्खा और उनके मुखार्विदसे उपदेश सुना। सूरिजीने अपने विहारकी जो सीमा निर्धारितकी थी यहीं पर उसका अन्त होता है। सूरिजी गंधारसे विहार करके जिस मार्ग फतेपुर-सीकरी पधारे थे उस रस्तेका निर्णय, हीरविजयसूरिरास, हीरसौभाग्य काव्य, विनयप्रशस्ति और लाभोदय राससे किया गया है । और उसीका ट्रिग्नोमॅटिकल सर्वेके नकशोंके साथ मीलान करके सूरिजीके विहारका नकशा तैयार कराया गया है। जो इसीके साथ लगा दिया गया है। १ यह वही जगन्मल्ल कछवाह है जो जयपुरके राजा बिहारीमलका छोटाभाई था । जिनको इसके संबन्धमें विशेष हाल जानना हो वे 'आईन-इ -अकबरी ' के प्रथम भागका, ब्लॉकमॅनके अंग्रेजी अनुवादका ४३१ वाँ पेज देखें। को इसके संबन्धमा जयपुरके राजा -अकबरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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