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________________ आमंत्रण. शासनकी शोभाको बढ़ावें । आपके वहाँ जानेसे द्वितीयाके चंद्रकी भाँति आपकी कीर्ति बढ़ेगी।" इतना कह कर वह दिव्याकृतिवाली स्त्री अन्तर्धान हो गई। वह कहाँ लुप्त हो गई इसका सूरिजीको कुछ भी पता नहीं चला। इससे मूरिजी उससे विशेष बातें न पूछ सके । मगर इतना जरूर हुआ कि उक्त शब्दध्वनिसे उनके हृदयमे अपूर्व उत्साहका संचार हो गया। सरिजी वहाँसे आगे बढ़े। सोजित्रा, मातर और बारेजा आदि गाँवोंमें होते हुए अहमदाबाद पहुँचे। अहमदाबादके श्रावकोंने बड़ी धूम धामके साथ सूरिजीका नगर-प्रवेशोत्सव किया, वहाँके सूबेदार शहाबखाने पहिले सूरिजीको कष्ट दिया था इसलिये उनसे मिलने उसे बड़ी शर्म मालूम देती थी मगर क्या करता ? बादशाहाका हुक्म था। वह मन-मार कर अपने रिसाले सहित सूरिजीकी अगवानीके लिए गया । उसने सूरिजीके चरणोंमें नमस्कार किया । सूरिजीके नगरमें आ जाने बाद उसने एक बार उनकी दरिमें पधरामणीकी; उनके आगे हीरा, मोती आदि जवाहरात रक्खे और कहाः "महाराज ! ये चीजें अपने साथ ही लेते जाइए । आपको मार्गमें किसी तरहका कष्ट न हो इसके लिए मैं हाथी, घोड़े, रथ, पालकी आदिका प्रबंध कर देता हूँ। आप तत्काल उन्हें ले कर दिल्लीश्वरके पास पहुँच जाइए। इन सबके साथ रहनेसे आपको मार्गमें किसी तरहके कष्टका मुकाबिला नहीं करना पड़ेगा । मुसाफिरी बहुत लंबी है । आपकी अवस्था बहुत ढल चुकी है। इस लिए इन सब साध. नोंका आपके साथ रहना जरूरी है। "महारज ! आपसे मैं एक बातकी क्षमा माँगता हूँ । वह यह है कि, मैंने आपके समान महास्मा पुरुषको तकलीफ पहुँचाई पी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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