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सूरीश्वर और सम्राट्।
प्रार्थना करें कि वे मुझे वीर-प्रभुके शासनकी सेवाका सामर्थ्य दें और मुझे निर्विघ्नता पूर्वक फतेहपुर-सीकरी पहुँचा कर मेरे कार्यमें सहायता करें । अब मैं आप लोगोंको केवल एक ही बात कहना चाहता हूँ। कि, सभी धर्मध्यान करते रहना, झगड़े-टंटोंसे जुदा रहना; विषय-वासनासे निवृत्त होना; और इस मनुष्यजन्मकी सार्थकता करनेके लिए दान, शील, तप और भावरूपी धर्मकी आराधना करनेमें दत्तचित्त रहना, ॐ शान्तिः !" ___ॐ शान्तिः' के उच्चारणकी समाप्तिके साथ ही सूरिजीने किसीकी और दृष्टिपात न कर आगे कदम बढ़ाया। श्रावक और श्राविकाएँ अपनी अपनी भावनाओं के अनुसार पीछे पीछे चले। थोड़ी दूर जा कर सब खडे रहे । मूरिजी आगे चले । जहाँ तक वे दिखते रहे वहाँ तक लोग टकटकी लगा कर उन्हें देखते रहे। जब वे आंखोकी ओट हो गये तब लोग उदासमुख वापिस अपने अपने घर चले गये।
सरिजीने गंधारसे रवाना हो कर पहिला मुकाम चाँचोलमें किया था। फिर वहाँसे रवाना हो कर जंबूसर होते हुए धूआरणके पासकी महीनदीको पार कर वटादरे पहुँचे । यहाँ सूरिजीको वंदना करनेके लिए खंभातका संघ आया था।
मूरिजीको उस गाँवमें एक आश्चर्योत्पादक बात मालूम हुई। रातमें जब वे सो रहे थे । कुछ नींद थी कुछ जागृत अवस्था थी। उस समय उन्होंने देखा कि,-एक दिव्याकृतिवाली स्त्री उनके आगे खड़ी हुई है । उसके हाथमें मोती और कुंकुम है। उसने मरिनीको मोतियोंसे बधाये और कहाः-" पूर्व दिशामें रह कर लगभग सारे भारत पर राज्य करनेवाला अकबर बादशाह आपको बहुत चाहता है। इसलिए आप निःशंक भावसे अकबरके पास जावें और वीर
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