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सूरीश्वर और सम्राट् । "महाराज ! आप आनंदपूर्वक जाइए। हम सभी राजी हैं। आप महान् प्रतापी है; पुण्यशाली हैं। आपके तप - तेजसे बादशाह धर्म प्रेमी होगा । इससे शासनोन्नतिके अनेक कार्य होंगे। हम आशा करते हैं कि, आप भी प्रभु श्रीहेमचंद्राचार्य के समान ही अकबर पर प्रभाव डाल कर जीवदयाकी विजयपताका फर्रावेंगे । शासनदेव हमारी इस आशाको अवश्यमेव सफल करेंगे। हमारी आत्मा इस बातकी साक्षी दे रही है । "
तत्पश्चात् सूरिजी महाराजके विहारका निश्चय होने पर एकत्रित संघने हर्षावेशसे वीर परमात्मा और हीरविजयसूरिके जयघोष से उपाश्रयको गुँजा दिया |
आज मार्गशीर्ष कृष्णा ७ का दिन है। गंधारके उपाश्रयके बाहिर हजारों आदमियोंकी भीड़ हो रही है । साधु - मुनिराज कमर कसने की तैयारी कर रहे हैं । श्रावक हर्ष - शोकमिश्रित स्थिति में बैठे हुए सूरिजी महाराजसे उपदेश सुन रहे हैं। दूसरी तरफ स्त्रियोंका समूह है। उनमें कई गुरुविरहसे आँसू बहा रही हैं; कई अकबर बादशाहको उपदेश देने जानेकी बात कह रही हैं । कई यह सोच कर निस्तब्ध भावसे महाराजकी तरफ देख रही हैं कि, अब कब उनके दर्शन होंगे ! उनमें कई स्त्रियाँ - जो गायनमें होशियार हैं- गुरु विरहकी गुहुलियाँ गा रही हैं । मुनिराज कमर बाँध कर तैयार हुए । सूरिजी भी तर्पनी और डंडा ले कर तैयार हो गये । हजारों स्त्री पुरुष सूरिजीकी मुख-मुद्राको देखते ही रहे । आगे आगे सूरिजी चले । पीछे पीछे मुनिराजोंका समुदाय अपनी अपनी उपधियाँ और पात्रे कंधों पर रख कर चलने लगे। उनके पीछे श्रावक लोग थे और सबसे पीछे स्त्रियोंका समुदाय था । गुरुजीसे होनेवाले लंबे बिछोहेका
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