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आमंत्रण । मनुष्य उसका अनुसरण करने लगजाते हैं। यह खयाल भी ठीक नहीं है कि, जिसको गर्ज होगी वह हमारे यहाँ आयगा ।' यह विचार शासनके लिए हितकर नहीं है । संसारमें ऐसे लोग बहुत ही कम हैं जो अपने आप धर्म करते हैं-उत्तमोत्तम कार्य करते हैं । धर्म इस समय लँगड़ा है। लोगोंको समझा समझा कर-युक्तियोंसे धर्मसाधनकी उपयोगिता उनके हृदयोंमें जमा जमा कर यदि उनसे धर्म-कार्य कराये जाते हैं तो वे करते हैं । इसलिए हमें शासन-सेवाकी भावनाको सामने रख कर प्रत्येक कार्य करना चाहिए । शासनसेवाके लिए हमें जहाँ जाना पड़े वहीं निःसंकोच हो कर जाना चाहिए । परमात्मा महावीरके अकाट्य सिद्धान्तोंका घर घर जा कर प्रचार किया जायगा तभी वास्तविक शासनसेवा होगी । ' सवी जीव करूं शासनरसी' (संसारके समस्त जीवोंको शासनके रसिक बनाऊँ ) इस भावनाका मूल उद्देश्य क्या है ? हर तरहसे मनुष्योंको धर्मका-अहिंसा धर्मका अनुरागी बनानेका प्रयत्न करना । इसलिए तुम लोग अन्यान्य प्रकारके विचार छोड़ कर मुझे अकबर के पास जानेकी सम्मति दो । यही मेरी इच्छा है।"
इस गंभीर उपदेशका प्रत्येक पर बिजलीकासा असर हुआ । पहिली बार अकबरके पास जानेमें जो हानि देखते थे वे ही अब अकबरके पास जानेमें लाभ देखने लगे । 'सूरिजी महाराजके उपदेशसे बादशाह मांसाहार छोड़ देगा तो कितना अच्छा होगा ? ' सूरिजी महाराजके उपदेशसे बादशाह पशुवध बंद कर देगा तो कितना उत्तम होगा ? ' ' सूरिजी महाराजके उपदेशसे यदि बादशाह जैन हो नायगा तो कितनी शासन-प्रभावना होगी?' इस तरह कल्पनादेवीके घोड़े प्रत्येकके हृदय में दौड़ने लगे। सबने प्रसन्नताके साथ कहा:--
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