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सूरीश्वर और सम्राट् ।
रोजे करते हैं, उनमें वे रात के वक्त जितनी जरूरत होती है उतना खा लेते हैं तो भी उन्हें कितनी ही तकलीफ मालूम देती है तब छः महीने तक लगातार कुछ न खा कर रहना कैसे हो सकता है ? उसको नौकरकी बात पर विश्वास न हुआ । इसलिए उसने निश्चय करने के लिए अपने दो आदमी भेजे । उनके नाम थे मंगलचौधरी और कमरुखाँ । उन्होंने चंपा के पास जा कर सविनय पूछा:
" बहिन ! इतने दिन तक भूखा कैसे रहा जा सकता है ? दिनमें एक वक्त भोजन नहीं मिलनेहीसे जब आदमीका शरीर काँपने लग जाता है तब इतने दिन तक विना अन्नके कैसे जीवन टिक सकता है ? "
चंपाने उत्तर दिया:-- " बन्धुओ ! यद्यपि ऐसी तपस्या करना मेरी शक्ति के बाहिरका कार्य है तथापि देव - गुरुकी कृपा से यह काम मैं कर सकती हूँ और आनंदपूर्वक धर्मध्यानमें दिन गुजार सकती हूँ । "
चंपाके ये परम आस्तिकतापूर्ण वचन सुन कर उनके मनमें जिज्ञासा उत्पन्न हुई | उन्होंने देव - गुरुके विषय में पूछा। चंपाने उत्तर दिया:-- “ मेरे देव ऋषभादि तीर्थंकर हैं । वे समस्त प्रकार के दोषों और जन्म, जरा, मरणसे मुक्त हो चुके हैं। और मेरे गुरु हीरविजयसूरि हैं । वे कंचनकामिनीके त्यागी हो कर ग्रामुनुग्राम विचरते हैं और लोगोंको कल्याणका उपदेश देते हैं । "
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मंगलचौधरी और कमरुखाने वापिस आ कर बादशाहते उपर्युक्त सब बातें कहीं। सुन कर बादशाहके मनमें ऐसे महान् प्रतापी सूरिके दर्शन करने की इच्छा उत्पन्न हुई। बादशाहको खयाल आया कि, - ऐतमादखाँ गुजरात में बहुत रहा है । इसलिए वह हीरविजयसूरि से अवश्यमेव परिचित होगा । उसने ऐतमादखाँको बुलाया और
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