________________
आमंत्रण |
७९ मुसलमान हैं और बाद के ८ नाम सोलहवीं संख्याको छोड़ कर हिन्दुओंके मालूम होते हैं। सोलहवां नाम है ' हरिजीसूर ' (Hariji Sur ) ये हरिजीसूर ही अपने ग्रंथके नायक हैं । जिनको हम हीरविजयसूरि के नामसे पहिचानते हैं ।
अब यह बताया जायगा कि, हीरविजयसूरि के साथ अकबर बादशाहका संबंध कैसे हुआ ?
एक वार अकबर शाही महलके झरोखे में बैठ कर नगरकी शोभा देख रहा था । उस समय उसको बाजे बजते हुए सुनाई दिये । बाज़ोंकी आवाजको सुनकर उसने अपने नौकर से जो उसके पास ही खड़ा था - पूछा:-" यह धूम धाम क्या है ?" उसने उत्तर दिया:- "चंपा नामकी एक श्राविकाने छः महीने के उपवास किये हैं। * इन उपवा सोंमें पानी के सिवा और कोई चीज नहीं खाई जाती है । पानी भी जब बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है तब और वह भी गर्म और दिनके समयमे ही पिया जा सकता है ।
'छः महीने के उपवास' इस वाक्यको सुन कर अकबरको आश्चर्य हुआ । उसने सोचा, जब मुसमान लोग सिर्फ एक महीने के
* छ: महीनों के उपवाससे यह नहीं समझना चाहिए कि आजकल जैन लोग एक दिन उपवास और एक दिन पारणा करके जैसे छः मासी तप करलेते हैं वैसे ही किया था | चंपाने लगातार छ: महीने तक उपवास किये थेनिराहार रही थी । इसमें अत्युक्तिका लेश भी नहीं है । कारण- इस तरह छः महीने तक लगातार तप करनेके और भी कई उदाहरण मिलते हैं । उदाहरणार्थहम जिस समय की बात करते हैं उससे कुछ ही काळ पहिले यानी विक्रमकी पन्द्रहवीं शताब्दिमें, श्री सोमसुंदरसूरि के समय में श्री शान्तिचंद्रगणिने भी छः महीनेके लगातार उपवास किये थे ।
Jain Education International
[ देखो - सोमसौभाग्य काव्य (संस्कृत) के १० वे सर्गका ६१ वाँ श्लोक []
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org