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________________ ७८ NM सूरीश्वर और सम्राट्। धर्मसभामें इतना रस लेने लगा था कि, उसने अपनी कोर्टको तत्त्व शोधकोंका वास्तविक घर बना दिया था ।" “ The Shāhanshūl's court became the home of inquirers of the seven climes, and the assemblage of the wise of every religion and sect.” ( Akbarnämā. Translated by H. Beveridge Vol. III P. 366.) अर्थात् ----शहनशाहा और सातों प्रदेशों (पृथ्वीके भागों) के शोधकोंका और प्रत्येक धर्म तथा संप्रदायके बुद्धिमान् मनुष्योंका घर हो गया था। डॉ. विन्सेंट स्यिय का मत है कि, अकवरकी इस धर्मसभामें सबसे पहिले सन् १९७८ ईस्वी में एक पारसी विद्वान् सम्मिलित हुआ था। वह नवसारी (गुजरात) से आया था। उसका नाम था दस्तूर मेहरजी राणा। पारसी लोग उसे 'मोवेद के नामसे पुकारते हैं। यह विद्वान् सन् १९७९ ईस्ली तक वहाँ रहा था। उसके बाद गोवासे तीन ईसाई पादरी आ कर उसमें शामिल हुए थे। उनके नाम थे१ फादर रिडोल्फो एक्ोत्रीवा (Father Ridolfo Advaviva) २-मॉन्सिराट ( Monserrate ) और ३-एनरीशेज (Enrichez) यहाँ यह बता देना भी आवश्यक है कि, अकबरने अपने इस सभाके मेम्बरोंको पाँच भागोंमें विभक्त किया था। उनमें कुल मिला कर १४० मेम्बर थे। 'आईन-इ-अकबरी' (अंग्रेजी अनुवाद) के दूसरे भागके तीसरे आईनके अन्तमें इन मेम्बरोंकी सूची दी गई है। उसमें ९३७-५३८ वे पेजमें प्रथम श्रेणीके भेन्जरों के नाम हैं। उनमें सबसे पहिला नाम शेख मुवारिकका है । यह अबुलफजलका पिता था । सबसे अन्तमें ' आदित्य' नामक किसी हिन्दुका नाम है । प्रारंभके बारह नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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