SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमंत्रण । mmmmmm शाहको हक है।" शेख मुबारिकने यह इकरारनामा लिखा था और दूसरे उल्माओंने ( मुसलमान धर्मगुरुओंने ) उस पर हस्ताक्षर किये थे । ( सं. १९७९ )। इसके बाद भी बादशाहने उल्माओंके उपर्युक्त प्रधानको और खास न्यायाधीशको नौकरीसे बरतरफ कर दिया था। कहा जाता है कि, जब मुसलमानी धर्म परसे उसकी श्रद्धा हट गई और जब उस पर वह नाराज हुआ था तब साफ साफ़ लफ्जोंमें वह कहने लगा था कि,-"जिस महम्मदने दस बरसकी छोकरी आयेशाके साथ ब्याह किया था और जिसने खास अपने दत्तक पुत्रकी स्त्री जैनाबके साथ-जिसको उसके पतिने तलाक दे दी थीब्याह कर लिया था वही-ऐसा अनाचार करनेवाला महम्मद कैसे 'पैगम्बर '-परमेश्वरका दूत हो सकता है ? " इस तरह जब मुसलमानधर्मसे उसकी रुचि हट गई तब वह हिन्दु, जैन, पारसी और ईसाई धर्मके विद्वानोंको बुला कर अपनी सभामें सम्मिलित करने लगा । और तभीसे वह भिन्न भिन्न धर्मके विद्वान् पुरुषोंकी संगतिमें बैठने और उनमें होनेवाली धर्मचर्चाको सुनने लगा। उसने अपनी सभा हरेक धर्मके विद्वानोंको अपने अपने मन्तव्य प्रकट करनेकी छुट्टी दी थी। इससे विद्वान् लोग बड़ी ही गंभीरता ओर बड़ी ही शान्तिके साथ धर्मचर्चा करते थे । उससे अकबरको बहुत आनन्द होता था । मुसलमानोंके विद्वानों परसे तो उसकी श्रद्धा बिलकुल ही हट गई थी । और तो और उसने मसजिद तकमें जाना छोड़ दिया था । वह तो अपनी धर्मसभामें बैठ कर धर्मचर्चा सुनना और उसमेंसे सार हो उसको ग्रहण करना ही ज्यादा पसंद करने लगा था । अबुलफज़ल लिखता है कि," अकबर अपनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy