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सूरीश्वर और सम्राट्।
वचनोंसे इतने विरुद्ध होते थे कि, बहुत खोज करने पर भी उसके आन्तरिक भाव जाननेकी कुंजी नहीं मिलती थी।
इससे मालूम होता है कि, अकबरकी स्थिति धार्मिक विषयमें या तो अधकचरी थी-अव्यवस्थित थी या उसे कोई जान ही नहीं सका था । अस्तु । अकबरकी आगेकी जिन्दगीका वर्णन आगेके लिए छोड़ कर, अभी तो इतने परिचय पर ही सन्तोष करेंगे ।
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