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सम्राट्र-परिचय। जिन्दा ही आगमें जलवा दिये थे। ऐसे भयंकर पापहीके कारण आज भी ऐसी कसमें दिलाई जाती है कि, 'तू अमुक कार्य करे तो तुझे चित्तौड़ मारेकी हत्याका और गऊ मारेका पाप हो । ' कहा जाता है कि, चित्तौड़के युद्ध में जो राजपूत मारे गये थे उनका अंदाजा लगानेके लिए उनकी जनोइयाँ तोली गई थीं। उनका वजन ७४॥ मन हुआ था। आज भी पत्र लिखने में ७४॥का आंक लिखा जाता है। उसका कारण यही बताया जाता है । मगर ऐतिहासिक दृष्टिसे इस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता है । कारण-चित्तौड़की इस लड़ाईके पहिले भी ७४॥ का अंक लिखनेका रिवाज प्रचलित था। यह बात सप्रमाण सिद्ध है।
अकबरको अजमेरके ख्वाजामुइनुद्दीन चिश्ती पर बहुत श्रद्धा थी। इसी लिए उसने चितौड़ पर चढ़ाई की तब प्रतिज्ञा की थी कि, यदि मैं इस युद्ध में जीतूंगा तो, पैदल आ कर ख्वाजा साहिबकी यात्रा करूँगा । विजय प्राप्त करनेके बाद प्रतिज्ञानुसार वह ता० २८ फर्वरीको यात्राके लिए रवाना हुआ था । गर्मीकी मोसिम थी। कई स्त्रियाँ
और अन्यान्य लोग भी उसके साथ पैदल ही चलते थे। उस समय मॉडल में-जो चित्तौड़से ४० माइल है-उसको अजमेरसे आये हुए कई फकीर मिले । उन्होंने अकबरको कहा:-" हमें ख्वाना साहिवने स्वप्नमें कहा है कि, बादशाहको सवारीमें आना चाहिए । ” इसलिए बादशाह यहाँसे सवारीमें रवाना हुआ। जब अजमेर थोड़ी ही दूर रह गया तब सभी सवारीसे उतर गये थे और पैदल चल कर अजमेर पहुँचे थे।
उसके कुछ ही काल बाद अर्थात् स० १५६९ में उसने रणथंभोर और कलिजर भी राजाओंके पाससे छीन लिया था। तद्नन्तर स० १५७२-७३ में उसने गुजरातका बहुत बड़ा भाग अपने अधिकारमें किया था। उस समय गुजरातका सुलतान मुजफ्फरशाह
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