SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ सूरीश्वर और सम्राट् । था । उसने बिना ही प्रयास अपना राज्य अकबर के अर्पण कर दिया था और आप भी अकबरकी शरण में चला गया था । यद्यपि सूरत, मरौच, बड़ौदा और चाँपानेर लेनेमें उसे कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी थीं, तथापि अन्त में उसने उन्हें ले ही लिया था । कहा जाता है कि एक बार गुजरातकी लड़ाई में सरनाल ( यह स्थान ठासरासे पूर्वमें पाँच माइल है) के पास अकबरके प्राण खतरे में आ गिरे थे। वहाँ जयपुरके राजा भगवानदास और मानसिंहने बड़ा शौर्य दिखा कर उसकी रक्षा की थी। सन् १९७५ ईस्वी में उसने बंगाल, बिहार और उडीसा इन तीनों प्रान्तोंको वैसी ही क्रूरता और वीरता के साथ अपने अधिकारमें किया था । इसके बाद तीन चार बरस शान्तिमें बीते थे । अकबर में लोभ प्रकृति कुछ ज्यादा थी । इसलिए वह खर्च कुछ कभ रखता था । वह इतना जबर्दस्त सम्राट् था तो भी नियमित सेना तो केवल २५००० ही रखता था । उसने अपने आधीन राजाओंसे अमुक रकम 'खंडणी' में लेने और आवश्यकता पड़ने पर फौजी मदद करने की शर्त कर रक्खी थी। जब सम्राट्ने सन् १९८१ में काबुल पर चढ़ाई की थी, तब उसकी फौजमें ४५००० घुड़सवार और ५००० हाथी थे । जैनकवि ऋषभदासने 'हीरविजयसूरि रास' में अकबरकी समृद्धिका वर्णन इस तरह किया है । सोलह हजार हाथी, नौ लाख घोड़े, बीस हजार रथ, अठारह लाख पैदल ( जिनके हाथों में ' भाले' और 'गुरज' शस्त्र रहते थे ) सेनाके सिवा चौदह हजार हरिण, बारह हजार चीते, पाँच सौ वाघ, सत्तर हजार शिकरे और बाईस हजार बाज आदि जानवर थे। सात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy