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________________ सूरीश्वर और सम्राट कीले जड़ कर माग्नेकी, या काटनेकी और फॉमीकी सजा दे देता था। अंग-छेद और कोड़े मारनेका हुक्म तो अकबर वात वामें दे देना था। अकबर स्वयं ही क्या, अकबरन जिन जिन सूबेदारोंको भिन्न भिन्न प्रान्तोंमें नियत किया था वे भी अपराधियोंको बातकी बातमें सली देनेकी, हाथी के पैरोंतले कुचलनेकी, फाँसीकी, दाहिना हाथ कटवा देनेकी और कोड़े मारनेकी सजा दे दिया करते थे। अकबर जब युद्धमें प्रवृत्त होता तब वह उस समय तक निर्दयतापूर्वक लोगोंको कस्ल करता रहता था, जब तक कि उसे अपनी जीतका निश्चय न हो जाता था। अकबरके जीवनमेंसे अकबरकी निर्दयताके ऐसे अनेक उदाहरण मिल सकते हैं । सन् १९६४ ईस्वीमें 'गोंडवाणा' की न्यायशालिनी रानी दुर्गावतीके साथ जब युद्ध हुआ तब उसने युद्धमें बड़ी ही निर्दयता दिखाई थी। राना उदयसिंहके समयमें सन् १५६७ ईस्वीके अक्टोबर महीनेमें उसने ' चित्तौड़ । पर चढाई कर दस माइल तक घेरा डाला था। वह भी इसी प्रकारका युद्ध था । कहा जाता है कि, यह चित्तौड़-दुर्ग ४०० फीट ऊँचा था । कहा जाता है कि इस युद्धमें अकवरने जो निर्दयता दिखाई थी उसके स्मरणसे हृदय आज भी काँप उठता है । 'हारा जुआरी दुगना खेले। इस कहावतके अनुसार, जब उसे अपनी जीतका कोई चिह्न नहीं दिखाई दिया तब उसने अपने सिपाहियों को आज्ञा दे दी कि, चित्तौ का जो मिले उसीको कत्ल कर दो । और तो और एक कुत्ता मिल जाय तो उसे भी मार दो । चित्तौड़की चालीस हजार किसान प्रजा पर उसने इस निर्दयतासे तलवार चलवाई कि, तीस हजार किसान देखते ही देखते खतम हो गये। उनका क्रोध इतना बढ़ गया कि, उसकी शरणमें आनेव ले बड़े बड़े धनियोंको भी वह मरवा देता था । उफ ! निर्दोष बालकों और स्त्रियों तकको उसने पकड़वा पकड़वा कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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