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संवत् १९४९ का चौमासा, शहेर “ हुशीआरपुर" में जा किया. चौमासामें श्री मानविजयोपाध्याय विरचित "धर्म संग्रह, १ तथा श्री संघतिलकसूरि विरचित "तत्त्व कौमुदी” नामा सम्यक्त्व सप्ततिका वृत्ति, वां वते रहे. चौमासे बाद जंबू शहेरके नजदीक रहनेवाले ब्राह्मणके पुत्र "कर्मचंद" और बडौदेके रहनेवाले श्रावक"लल्लुभाई”को दीक्षा दीनी,जिनके नाम, अनुक्रमसे "कपूरविजयजी" और "लाभविजयजी रखे. बाद हुशीआरपुरसे विहार करके श्रीमदिजायनंदसूरि (आत्मारामजी) महाराज, जालंधर होकर "वेरोवाल 7 पधारे. यहां श्री महाराजजी साहिवको मुंबाईकी “धी जैन एसोसीएशन ओफ इन्डिया" की मारफत, चीकागो (अमेरिका) का पत्र मिला. तिसमें चीकागोमें होनेवाले विश्व प्रदर्शनके वखत देश परदेशके धर्मगुरुओंका जो बडा मेला (समाज-The World's Parliament of Religeons.) होनेवाला था. तिसमें पधारनेका आमंत्रण करनेमें आयाथा, और सबसडियरी कमीटिके मेम्बर मुकरर किए गएथे. परंतु अपनी साधुवृत्तिको खलल होवे इसवास्ते वहां नहीं जा सकनेसें, श्री महाराजजी साहिबने, चीकागोके पत्रकी नकल और चीकागोवालेकी मांगणी मुजब अपना संक्षेपसे जीवन वृत्तान्त, तथा फोटो (छबि) वगैरह, मुंबई श्रीसंघको भेजवा दिये. जिसमें मुंबईके श्रीसंघने एक सभा करके " मि० वीरचंद राघवजी गांधी, बी. ए." (फोटो देखो) को जैन धर्मका प्रतिनिधि करके, चीकागो भेजनेका ठराव किया. इस वखत महाराज श्रीका मुकाम, वेरोवालसे झंडीआले होकर शहेर “अमृतसर में हुआ था. वहां मि० वीरचंद राघवजीने आकर, श्रीमहाराजजी साहिबको प्रार्थना करी कि, “ मुजको चीकागो जानेके वास्ते श्रीसंघने फरमाया है, इसवास्ते मैं श्रीसंघकी आज्ञाको मस्त कोपरि धारण करके, आपकी सहायतासे चीकागो जानेको तैयार हुआहूं, आप कृपा करके मुजको मदद तरीके थोडासा जैनधर्मसंबंधीब्यान, लिखदेवें.'' इस प्रार्थनाको स्वीकार करके, श्रीमहाराजजी साहिबने, एक महिने तक परिश्रम उठाकर, एक लिखाण (निबंध) तैयार करदिया.
अमृतसरसें विहार करके श्रीमहाराजजी साहिब, झंडीआलामें पधारे; और संवत् १९५०
यह निबंध चीकागो प्रश्नोत्तर के नामसे ग्रंथके आकारमें छप रहाहै. धर्मसमाजकी १७ दीनकी काररवाई और भाषणका जो हाल पुस्तकद्वारा चौकागोमें छपाहै, जिसमें महाराजजी श्रीकी तसबीर रखी गई है और उसके नीचे इस माफक लेख है.
“No man has so peculiarly identified himself with the interests of the Jain Community as “Muni Atmaramji.” He is one of the noble band sworn from the day of initiatiou to the end of life to work day and night for the high mission they have undertaken. He is the high priest of the Jain Community and is recognized as the highest living “Authority” on Jain religion and literature by oriental scholars."
भावार्थः-जैसी विशेषतासे मुनी आत्मारामजीने अपने आपको जैनधर्ममें संयुक्त वा लीन किया है ऐसे किसी माहात्माने नहीं किया है. संयम ग्रहण करनेके दिनसे जीवन पर्यंत जिन प्रशस्त महाशयोंने स्वीकृत श्रेष्ठ धर्म अहोरात्र रत वा सहोद्योग रहनेका निश्चय वा नियम किया है उनमेंसें यह मुनिराज है. जैनधर्मके आप परमाचार्य हैं, तथा प्राच्य वा पौरस्त्य विद्वान जैनमत और जैनशास्त्रोंके संबंधमें विद्यमान जनोंमें सबसे उत्तम प्रमाण इस महर्षिको मानते हैं.
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