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तैत्तिरीय ब्राह्मण अ० २, अ० ३, अ० १० में प्रजापतिने सोपरा
जाको उत्पन्न किया, तीनों वेदोंको रचे, सोमने वेदोंको मुठ्ठीमें छिपाया इत्यादि वर्णन .... .... .... .... .... .... ....
२७७
(११) एकादश स्तंभ--जैनाचार्योंके बुद्धिका वैभव. .... .... २८८-२९९ जैनमतानुसार गायत्री मंत्रका अर्थ .... .... ....
.... २८० नैयायिकमतानुसार .... .... .... ....
२८४ वैशेषिकमतानुसार .... .... .... .... सांख्यमतानुसार .... .... ....... ....
२८७ वैष्णवमतानुसार .... ... .... ....
२८८
" बौद्धमतानुसार .... .... ....
.... .... .... .... .... .... .... २९१ जैमनिमतानुसार .... .... .... सामान्य करके सर्व वादियों के संवादि स्वरूप परमेश्वरका प्रणिधानरूप गायत्रीमंत्रका अर्थ
...... .... २९५ गायत्री सर्व बीजाक्षरोंका निधान है, ऐसे ब्रह्माणोंके प्रवादको
आश्रित्य होकरके कितनेक मंत्राक्षरोंके बीजोंका वर्णन .... .... २९६
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२९२
(१२) बादश स्तंभ-सायणाचार्य, शंकराचार्यादिकृत गायत्रीअर्थका
व्याख्यान ..... .... .... .... .... .... २२९---३१९ सायणाचार्यकृत भाष्यका व्याख्यान ... महीधरकृत यजुर्वेदभाष्यके तीसरे अध्यायमें लिखे हुये अर्थका
आर शकरभाष्यका व्याख्यान .... .... .... .... .... ३०० स्वामी दयानंद सरस्वतीका व्याख्यान .... .... .... .... २०२ पूर्वोक्त व्याख्यानकी समीक्षा ( वेद ईश्वरोक्त नहीं है) .... ....
३०४ मनुस्मृतिमें लिखा है कि जो वेदका निंदक है सो नास्तिक है इत्यादि ।
आशंकाका समाधान .... महाभारतके १०९ और १७५ अध्यायमें वेदकी और हिंसक यज्ञकी
निंदा लिखी है. तिसका वर्णन .... .... .... .... .... ३०७ मत्स्यपुराणके अध्याय १४२ में हिंसक यज्ञकी उत्पत्ति और व
सुराजाकी कथा .... .... ... .... .... .... .... ३०८ महाभारतमें लिखाहै पुराण, मनुस्मृति, वेदादि शास्त्र आज्ञासिद्ध
होनेसें खंडन नही करना इसका उत्तर .... ......... ....
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