________________
पृष्ठ पंक्ति
जीन
.
6 /
06
ا
जीन
ر
मास
द्वव्य
ل
२०
के
ا
سم ا
और
س
और
&
अथ तत्त्वनिणयप्रासादस्य शुद्धिपत्रम् । ___अशुद्ध शुद्ध
पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध जिन
पृछकके
पृच्छकके समकित सम्यक्त्व
एकनिष्ट एकनिष्ठ पारंगामी पारगामी
परवादियों को परवादियोंको ऋषभदेव ऋषभदेव
२३ प्तहां तहां जिस
भास देवप्रधान देवार्य
अंधकारक अंधकारका चिन्ताचिताः चिन्तांचिताः
अनिवडा अनित्या रुपमद रूपमद
द्रव्य मुद्रामुत्रिको मुद्रा मूर्तिको
स्त्रमावसें स्वभावसें देवकी देवीकी संसारिक सांसारिक
कयीये करीये भद्रबाहू भद्रबाहु
जीवनमोक्षावस्थामें और जो
द्रव्यार्थक द्रव्यार्थिक प्रमख प्रमुख
ओर अनपांगादि अंग उपांगादि
कारण क्रियाकारण कोठे कीतने कोठेकी तरें
ब्रह्म । ब्रह्मा कालमें आचारादि
२३-२५ सम्यक्तं सम्यक्त्वं कालमें आचारादि'
•२६ गुणमयी । गुणमय । उपासक उपाशक
अर्हनकी । अर्हन्का । पाणिनी पाणिनि
४२ २१ परन्तप परन्तपः लिखत लिखते
४३ १० सृष्टयार्थ सृष्टयर्थ कोई अजाण केई अनजान
यावदष्टशतं यावदन्दशतं ऋचाचे ऋचामें
अध्याय शुनःशेषादि शुनःशेपादि
सवासां सर्वासां रक्तस्त्राव, रक्तस्रावमें ,,४८ २१-१५ स्त्रियाओंके-को स्त्रियोंके को तदन तदनु
५० १९ भृकुटी भृकुटी ऋचामें ऋचामें
मृत्यं ऋत्विजो ऋत्विजो
पुरुषा
परुषा दूत
मुखातटः मुखावटः जैमिनीयाः पनः जैमनीयाः पुनः
चाभद्दीप्ता चाभवदीप्ता मानं मान्यं
पिडला पिंगला जमें जैसे
योजम् योजनम् जनमतवाले जैनमतवाले
प्रमाण
प्रणाम कोइ लोक केइ लोक ७१ १५-१७ अद्रुत | सर्व
७३ ३ प्रसन्नान् प्रपन्नान्
vor RAMA
२८
-FREEmitri . . . . . .
२४
मृत्यु
दुत
v
२५ .
२२
९ २१
सवे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org