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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
सुनक्षत्र पुरे रम्ये धर्मनाथप्रतिष्ठिते ॥ घसेंजनशलाकायाः पादोनद्विशतार्हताम् ॥ ६ ॥ शिखिबाणांकचंद्राब्दे (१९५३) वल्लभेन मुमुक्षुणा ॥ राकायां प्रथमादर्शेऽलेखि माधवमासके ॥ ७ ॥
युग्मम् ॥
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सूर्याचंद्रमसौ यावद् यावच्छ्रीवीरशासनम् ॥ ग्रंथोऽयं नंदतात्तावत् परोपकृतिहेतवे ॥ ८ ॥ कियानप्यस्य शास्त्रस्य श्राद्धैः पट्टीनिवासिभिः ॥ पंडितामृत चंद्राद्वैर्भागोऽस्ति परिशोधितः ॥ ९ ॥ ॥ इति शुभं भूयात् ॥
॥ इतिश्रीमहुद्धिविजयगणिशिष्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिततत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथः समाप्तः ॥
यह ग्रंथ मरुदेशवासी (हाल मुंबई निवासी ) ओसवाल बालफेना ( बाफणा ) परमार गोत्रीय जैन ( श्वेतांबरी - तपगच्छीय ) अमरचंद पी० (पद्माजी) परमार ने स्वमत्यनुसार पदच्छेद प्रूफ आदि शोधन करके प्रसिद्ध किया. याचना है कि पाठक वर्ग दृष्टिदोषकी क्षमा करे. श्रेयांसि सन्ति बहुविघ्नहतानि लोके । कस्येदमस्त्यविदितं भुवि मानवस्य ॥ श्रेयस्तरोऽयमिति यः समयात्ययोऽभूत् । तं क्षन्तुमर्हति सदा विदुषां समूहः ॥ १ ॥
अर्थः- किसको विदित नही है कि “ अच्छे कार्यों में बहुत विघ्न होते हैं.” यह ग्रंथ एक बड़ा सत्कार्य है, जिससे (कीतनीक आफत - मुश्केली के सबबसें) प्रसिद्ध करनेमें विलंब हुवा जिसकी सुज्ञ साक्षरवर्ग क्षमा करेंगे. अंतर्कापिका अगम धरमचंद्र दनपत दन मान जीन । पकर क्षमाधरम सुपरद तन तलीन ॥
॥ शुभम् ॥
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