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षत्रिंशःस्तम्भः।
७३.५ अथ ऋजुसूत्राभास कहते हैं:-सर्वथा द्रव्यका जो निषेध करता है, सो ऋजुसूत्राभास है. उदाहरण जैसें, तथागतमत. क्योंकि, बौद्ध क्षणक्षयिपर्यायोंकोही प्रधानतासें कथन करते हैं, और तत्तत्आधारभूत दृव्योंको नही मानते हैं; इसवास्ते बौद्धमत, ऋजुसूत्राभासकरके जानना.
ऋजुसूत्रके दो भेद है. सूक्ष्मऋजुसूत्र, जैसें पर्याय एकसमयमात्र रहनेवाला है (१) स्थूलऋजुसूत्र, जैसें मनुष्यादिपर्याय, अपने २ आयुःप्रमाणकालतक रहते हैं. । इतिपर्यायार्थिकस्य प्रथमोभेदः॥ १॥
अथ दूसरा भेद लिखते हैं:“॥ कालादिभेदेन ध्वनेरर्थभेदं प्रतिपद्यमानः शब्दइति ॥”
अर्थः-व्याकरणके संकेतसे प्रकृतिप्रत्ययके समुदायकरके सिद्ध हुआ काल कारक लिंग संख्या पुरुष उपसर्गके भेदकरके ध्वनिके अर्थ भेदको जो कथन करे, सो शब्दनय है. कालभेदमें उदाहरण जैसें, 'बभूव भवति भविष्यति सुमेरुरिति' हुआ, है, होवेगा, सुमेरु. यहां कालत्रयके भेदसें सुमेरुका भी भेद, शब्दनयकरके प्रतिपादन करीये हैं. द्रव्यत्वकरके तो, अभेद इसके मतमें उपेक्षा करीये हैं.। कारकभेदमें उदाहरण जैसें, 'करोति क्रियते कुंभ इति.'। लिंगभेदमें तटस्तटीतटमिति' ।संख्याभेदमें 'दाराः कलत्रं । पुरुषभेदमें 'एहि मन्ये रथेन यास्यसि नहि यास्यति यातस्ते पिताइत्यादि' । उपसर्गभेदमें 'संतिष्ठते अवतिष्ठते.' । इति ।
अथ शब्दनयाभास लिखते हैं:-कालादिभेदकरके विभिन्नशब्दके अर्थको भी, भिन्न मानता हुआ, शब्दाभास होता है. उदाहरण जैसे, 'बभूव भवति भविष्यति सुमेरुः' इत्यादिक भिन्नकालके शब्द, तिनका भिन्नही अर्थ कहता है, भिन्नकालशब्द होनेसें. तैसें सिद्ध अन्यशब्दवत्, इति । 'बभूव भवति भविष्यति सुमेरुः' इसवचनकरके शब्दभेदसें अर्थका एकांत भेद मानना, शब्दाभास है. ॥ इतिपर्यायार्थिकस्य द्वितीयोभेदः॥२॥
अथ पर्यायार्थिकका तीसरा भेद समभिरूढनयका खरूप लिखते हैं:“॥ पर्यायशब्देषु निरुक्तिभेदेन भिन्नमर्थ समभिरोहन समभिरूढइति ॥”
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