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________________ तत्त्वनिर्णयप्रासाद असद्भूत व्यवहारही उपचार है, जो उपचारसें भी उपचार करे, सो उपचरित असद्भूतव्यवहार. जैसें, देवदत्तका धन. यहां संश्लेषरहित वस्तुसंबंध विषय है. । १३ । संश्लेषसहित वस्तुसंबंधविषय, अनुपचरित असद्भूतव्यवहार. जैसें, जीवका शरीर । १४ । ७३४ उपचार भी नव प्रकारका है. द्रव्यमें द्रव्यका उपचार ( १ ) गुणमें गुणका उपचार ( २ ) पर्याय में पर्यायका उपचार ( ३ ) द्रव्यमें गुणका उपचार ( ४ ) द्रव्यमें पर्यायका उपचार ( ५ ) गुणमें व्यका उपचार (६) गुण में पर्यायका उपचार (७) पर्याय में द्रव्यका उपचार ( ८ ) पर्याय में गुणका उपचार ( ९ ). यह सर्व भी, असद्भूतव्यवहारका अर्थ जानना. इसीवास्ते उपचारनय, पृथक् नही है, इति. । मुख्याभावके हुए, प्रयोजन, और निमित्तमें उपचार वर्त्तता है; सो भी संबंध विना नही होता है. संबंध चार प्रकारका है. संश्लेषसंश्लेषसंबंध (१) परिणामपरिणामिसंबंध (२) श्रद्धाश्रद्धेयसंबंध ( ३ ) ज्ञानज्ञेयसंबंध (४) उपचरित असद्भूतव्यवहारके तीन भेद है. सत्यार्थ ( १ ) असत्यार्थ ( २ ) सत्यासत्यार्थ ( ३ ) इति येह १४ भेद व्यवहारनयके जानने. यही व्यवहारनयका अर्थ है. व्यवहारनय भेदविषय है. ॥ इतिद्रव्यार्थिकस्य तृतीयो भेदः ॥ ३ ॥ अथ पर्यायार्थिकनयके चार भेद लिखते हैं. उनमें प्रथम ऋजुसूत्रका स्वरूप लिखते हैं: “ ॥ ऋजुवर्त्तमानक्षणस्थायिपर्यायमात्रप्राधान्यतः भिप्रायऋजुसूत्रनय इति ॥ " सूत्रयन्न अर्थः- भूतभविष्यत्क्षणलवविशिष्ट कुटिलतासें विमुक्त होनेसें, ऋजु सरलही, द्रव्यकी अप्रधानताकरके, और क्षणक्षयीपर्यायोंकी प्रधानताकरके, जो कथन करे, सो ऋजुसूत्रनय है. उदाहरण जैसें, संप्रति 'सुख विवर्त्त है. इस वचनसें क्षणिक सुखनामा पर्यायमात्रको मुख्यताकरके कहता है, परंतु तदधिकरण जीव द्रव्यको गौणत्वकरके नही मानता है, इति . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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