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________________ ७३० तत्त्वनिर्णयप्रासाद___ अथ दूसरे नैगमका उदाहरण कहते हैं:- वस्तु पर्यायवद्रव्यम् ।” पर्यायवाला द्रव्य, वस्तु है. यहां पर्यायवाले द्रव्याख्यर्मिको, विशेष्य होनेसें, प्रधानपणा है; और वस्तुनामक धर्मिको, विशेषण होनेसें, अप्रधानपणा है. अथवा 'किं वस्तु' वस्तु क्या है ? 'पर्यायवद् द्रव्यम्' पर्यायवाला द्रव्य. ऐसी विवक्षामें, वस्तुको, विशेष्य होनेसें प्रधानपणा है. और पर्यायवद् द्रव्यको, विशेषण होनेसें, गौणपणा है. इतिधर्मिद्वयगोचरोनैगमो द्वितीयः ।२।। __ अथ तीसरे भेदका उदाहरण कहते हैं:-। “क्षणमेकं सुखी विषयासक्तजीव इति ।” एक क्षणमात्र सुखी विषयासक्त जीव है. यहां विष. यासक्त जीव द्रव्यको, विशेष्य होनेसें, प्रधानपणा है; और सुखलक्षणपर्यायको, विशेषण होनेसें, अप्रधानपणा है. इति धर्मिधर्मालंबनोनैगमः तुतायः।३। अथवा निगम, विकल्प, तिसमें जो होवे, सो नैगम. तिसके तीन भेद हैं. भूत (१) भविष्यत् (२) वर्त्तमान (३). जिसमें अतीत वस्तुको वर्तमानवत् कथन करना, सो भूतनैगम. यथा। आज सोही दीपोत्सव (दीवाली) पर्व है, जिसमें श्रीवर्द्धमानस्वामी मुक्ति गये.।१। भाविनि अर्थात् होनहारमें, होगईकीतरें उपचार करना, सो भविष्यत्नैगम. जैसें अर्हत सिद्धपणेको प्राप्तही होगये हैं। २। करनेका आरंभ करा, वा थोडासा निष्पन्न हुआ, तिसको हुआ वस्तु, जिसमें कहना, सो वर्तमाननैगम. जैसें, 'ओदनः पच्यते.'।३।। ... अथ नैगमाभासका स्वरूप कहते हैं:-दो आदिधर्मोको एकांत पृथक् २ जो माने, सो नैगमाभास, इति. आदिपदकरके दो द्रव्य, और द्रव्यपर्यायों दोनोंका ग्रहण है. उदाहरण जैसें, आत्मामें सत्, और चैतन्य, परस्पर अत्यंत पृथग्भूत है, इत्यादि. आदिशब्दसें वस्तुपर्यायवाले द्रव्य दोका, और क्षणएक सुखी, इति सुखजीवलक्षण द्रव्यपर्याय दोनोंका ग्रहण है. इन दोनोंकी सर्वथा भिन्नरूपप्ररूपणा करनेसें नैगमाभास दुर्नय है. नैयायिक, वैशेषिक, येह दोनों मत नैगमाभाससे उत्पन्न हुए हैं, इति.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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