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भूख. ऊपरसे नीचे आनेको दिल बिलकुल कबूल नहीं करता था, परन्तु कोई भी यात्री प्रायः ऊपर न रहनेका रिवाज होनेसें, लाचार होकर " श्री ऋषभदेवजी की " यात्रा करके नीचे उतर आये. सायंकालका प्रतिक्रमण करके, तीर्थराजके गुण गाते हुये फिर दर्शन करने को सूर्योदयकी आकांक्षा करते हुये सोगये. प्रातःकाल होतेही प्रतिक्रमण, प्रतिलेषणादि साधुकी क्रिया करके फिर ऊपर चढे. इसी तरह निरंतर करते रहे. तीर्थयात्रा करके पालीताणा सें विहार करके, " गोघा बंदर, ""भावनगर, ""वला” “पछी. ""लाखेणी, "" लाठीधर, “बोटाद, राणपुर, चुडा, लींबडी, " वगैरह गामोंमें विचरते हुये, सैंकडोंही जिन मंदिरोंकी यात्रा करते हुये, हजारोंही श्रावकांको दर्शन व उपदेश देते हुये, फिर शहेर अहमदाबादमें आये. जहां “ गाणे श्री मणिविजयजी " महाराजजीके शिष्य "गणि श्री बुद्धिविजयजी " ( बूटेरायजी) महाराजजीके पास, श्री " तपगच्छ" का वासक्षेप लिया. और इनही महात्माको श्री आत्मारामजीने, गुरु धारण किये. और शेष साधुओंने श्रीआत्मारामजी को अपने सद्गुरु धारण किये. इसवखत श्रीबुद्धिविजयजी महाराजजीने सब साधुओंके पिछले नाम, बदल दिये. जैसेंकी।
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श्री आत्मारामजी - श्री विश्रचंदजी
श्री चंपालालजी
श्री हुकमचंदजीश्री सलामत रायजीश्री हाकम रायजी ---
श्री खूबचंदजीश्री घनैयालालजी -
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श्री तुलशीरामजी -
श्री कल्याणचंदजी
श्री नीहालचंदजी
श्री निधानमलजी
श्री रामलालजी
श्री धर्मचंदजी
श्री प्रभुदयालजी - श्री रामजीलाल
श्री आनंद विजयजी.
श्री लक्ष्मीविजयजी. + श्री कुमुद विजयजी.
श्री रंगविजयजी. श्री चारित्रविजयजी. श्री रत्नविजयजी.
श्री संतोषविजयजी.
श्री कुशलविजयजी.
श्री प्रमोद विजयजी. श्री कल्याणविजयजी.
श्री हर्षविजयजी.
श्री हरिविजयजी.
श्री कमलविजयजी.
श्री अमृतविजयजी. श्री चंद्रविजयजी. श्री रामविजयजी.
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संवत् १९३२ का चौमासा, श्री " आनंद विजयजी " ( आत्मारामजी ) वगैरह साधुओंने शहेर अहमदाबादमें ही किया. चौमासे बाद शत्रुंजय गिरनार वगैरह तीर्थोंकी यात्रा करके श्री आनंद विजयजीने संवत् १९३३ का चौमासा, शहर भावनगर में किया; चौमासे बाद वहोरा अमरचंद, जसराज, झवेरचंद " के संघके साथ,' 'शत्रुंजय, तलाजा, डाठा, महुवा, दीव, प्रभासपाटण, वेरावल, मांगरील, " होकर ताथयात्रा करते हुए शहर जुनागढ तीर्थ " गिरनार " की यात्रा करके शहर जामनगर में पधारे. यहांसे सघने फिर भावनगर चलने के
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+ तसबीर देखो.
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